सनातनी कथा का अभिप्राय
सनातनी कथा का अभिप्राय एक ऐसी अनंत धारा से है, जो भारतीय सभ्यता, संस्कृति और धर्म के मूलभूत आदर्शों और सिद्धांतों को संजोए हुए है। यह कथाएँ न केवल धार्मिक ग्रंथों और पुराणों का हिस्सा हैं, बल्कि जनमानस में नैतिकता, धर्म, और जीवन-मूल्यों को स्थापित करने का माध्यम भी रही हैं। “सनातन” शब्द का अर्थ है “अनादि और अनंत,” अर्थात् जो सृष्टि के आरंभ से ही है और सृष्टि के अंत तक रहेगा।
सनातनी कथाएँ भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत की नींव हैं। इन कथाओं के माध्यम से वेद, पुराण, महाकाव्य (महाभारत और रामायण), उपनिषद, और अन्य ग्रंथों में निहित शिक्षाओं को सरल और रुचिकर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। यह कथाएँ मानव जीवन के सभी पक्षों को संबोधित करती हैं, जैसे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, कर्म, योग, और भक्ति।
सनातनी कथा का उद्देश्य और महत्व
सनातनी कथाओं का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं है, बल्कि यह मानवता को नैतिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करना है। ये कथाएँ सिखाती हैं कि सत्य, अहिंसा, प्रेम, करुणा, और धर्म का पालन कैसे किया जाए। इसके अलावा, यह कथाएँ जीवन के गूढ़ रहस्यों को उजागर करती हैं और मानव को ईश्वर से जोड़ने का मार्ग प्रशस्त करती हैं।
धर्म की शिक्षा
सनातनी कथाओं में धर्म का प्रमुख स्थान है। धर्म का अर्थ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि वह जीवन जीने की सही विधि है। उदाहरण के लिए: http://validator.w3.org/check?uri=sanatanikatha.com
- महाभारत में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए गीता के उपदेश जीवन के सभी पहलुओं को धर्म से जोड़ते हैं।
नैतिक मूल्यों की स्थापना

सनातनी कथाएँ नैतिकता और सदाचार को बढ़ावा देती हैं। जैसे:
- सत्य और धर्म के लिए राजा हरिश्चंद्र का त्याग।
- प्रह्लाद की कथा में भक्ति और धर्म के लिए संघर्ष।
संस्कार और शिक्षा
इन कथाओं का एक अन्य उद्देश्य मानव को संस्कारित करना है। बच्चों को बचपन से ही इन कथाओं के माध्यम से अच्छे संस्कार दिए जाते हैं।
सनातनी कथाओं का स्रोत
वेद और उपनिषद
सनातन धर्म के प्राचीनतम ग्रंथ वेद हैं, जिन्हें “अपौरुषेय” और “अनादि” माना जाता है। वेदों में कर्मकांड, ज्ञान और उपासना का वर्णन है।
उपनिषदों में ब्रह्मज्ञान और आत्मा की अनंतता की चर्चा की गई है।
पुराण
पुराणों में ब्रह्मांड की उत्पत्ति, देवताओं, ऋषियों, और मानव जाति की कहानियाँ हैं।
- भागवत पुराण: श्रीकृष्ण की लीला।
- विष्णु पुराण: भगवान विष्णु की कथाएँ।
महाकाव्य (रामायण और महाभारत)
- रामायण: आदर्श राजधर्म और परिवारिक मूल्यों की कथा।
- महाभारत: जीवन के सभी पक्षों का दर्पण।
सनातनी कथाओं में वर्णित प्रमुख तत्व
भक्ति और प्रेम
सनातनी कथाओं में भक्ति का विशेष महत्व है। भगवान और भक्त के बीच के प्रेम को कथाओं के माध्यम से दर्शाया गया है।
- मीरा और श्रीकृष्ण की कथा।
- गोपियों की श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति।
कर्म और फल का सिद्धांत
सनातनी कथाएँ कर्म के महत्व और उसके फल के सिद्धांत पर जोर देती हैं।
- “जैसा करोगे, वैसा भरोगे” का संदेश।
- राजा नल और दमयंती की कथा।
अहिंसा और करुणा
- जैन धर्म और बौद्ध धर्म में अहिंसा का महत्व।
- राजा शिबि की कथा, जिसमें उन्होंने एक कबूतर की रक्षा के लिए अपना मांस देने की पेशकश की।
सनातनी कथाओं का वर्तमान संदर्भ

आज के युग में भी सनातनी कथाएँ प्रासंगिक हैं। आधुनिक जीवन में व्याप्त तनाव, अवसाद, और भौतिकतावाद के बीच ये कथाएँ मार्गदर्शन प्रदान करती हैं।
- परिवार और समाज में सौहार्द्र स्थापित करना।
- पर्यावरण और प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता विकसित करना।
- भौतिक उपलब्धियों के साथ-साथ आध्यात्मिक संतुलन बनाना।
आध्यात्मिकता और आधुनिकता का समन्वय
सनातनी कथाएँ यह सिखाती हैं कि आधुनिक जीवन में आध्यात्मिकता को कैसे अपनाया जाए। उदाहरण:
- गीता का “निष्काम कर्म योग”।
- उपनिषदों का “सर्वं खल्विदं ब्रह्म” का विचार।
युवाओं को प्रेरणा
सनातनी कथाएँ युवाओं को नैतिक और आध्यात्मिक रूप से प्रेरित कर सकती हैं।
- अर्जुन की तरह जीवन में दृढ़ता और साहस।
- राम की तरह आदर्श नेतृत्व।
निष्कर्ष
सनातनी कथाएँ केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं हैं; वे जीवन के हर पहलू को सही दिशा देने का माध्यम हैं। ये कथाएँ मानवता को जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझाने, नैतिकता और धर्म का पालन करने, और ईश्वर की अनंतता का अनुभव कराने का साधन हैं। सनातनी कथाएँ अनंत हैं, क्योंकि यह सृष्टि के आरंभ से चली आ रही हैं और आगे भी मानवता का मार्गदर्शन करती रहेंगी।

इन कथाओं का अध्ययन और अनुसरण करना केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और जीवन की उच्चतम अवस्था की प्राप्ति का मार्ग है।
सनातनी धर्म में गीताज्ञान के अनुसार दूसरे अध्याय में अर्जुन कहते हैं की जिन दृतराष्ट के पुत्र को मर कर हम जीवित भी नहीं रहना चाहेंगे वही युद्ध के लिए हम सामने खड़े हैं | उनको में कैसे मर सकता हूँ अर्थार्त युद्ध नहीं करूँगा | अत कृपणता के दोष से व्यस्थित हो कर इस चिंता से की उसको मर कर कैसे जीऊंगा |
अपने आप को शिष्य बना कर उससे अपनी इस संकट की घडी में अपने एक कल्याणकारी शिक्षा का निवेदन करते हैं , अत सच्चे शिष्य को उचित शिक्षा देना जिससे उसका मोह और शोक नष्ट हो जाये गुरु का तात्विक कर्त्यब्य हैं | परन्तु मोह और शोक तो मन में निरंतर रहते हैं इनसे पूर्ण छुटकारे का माध्यम तो मन को अमन बनाना ही हैं | अर्थार्त मन बुद्धिः से ऊपर उठकर आत्मा चेत्यान में प्रवेश करना हैं |
अर्थार्त अत्याधमिक ज्ञान की प्राप्ति हैं , यह ध्यान में रकने की बात हैं की मोह और शोक महापुरुषों तात्विक आत्मा ध्यान ज्ञानी को कभी नहीं छू पते वह सदा प्रस्सन तथा शांत रहते हैं | तत्व ज्ञानी को संशय की कोई संभावना नहीं रहती क्युकी यह सिद्धांत की बात नहीं हैं यह तो तत्व ज्ञानी द्वारा देखा और पूर्ण रूप से परखा हुआ सत्य हैं | इसलिए अब भगवान् अर्जुन को कह रहे हैं की यह मोह जो संसार की कृति तथा स्वर्ग का अवरोधक और श्रेष्ठता अर्थार्त तत्ववेता के मार्ग में बड़ी रुकावट हैं तुम में कहा आ गया ?
अभी तक तो तुम में युद्ध का जोश था अब तुरंत क्या हो गया ? इसलिए ह्रदय की दुर्वलता को त्यागो और उठो | इसका अत्याधमिक अर्थ हैं की ऊपर उठो मन चैतन्य से आत्मवान बन जाओ | ऐसी अवस्था में न कोई शोक है न कोई मोह | इस अवस्था में चैतन्य में युद्ध करके पाप नहीं लगता क्युकी योद्धा अंहकार के कारन नहीं आपूर्ति कर्त्यब्य परायणीयता के लिए युद्ध करता हैं |