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KALIYUG KI UTPATI KAISE HUI

कलीयुग (Kali Yuga) हिन्दू धर्म के चार युगों में से एक है, जो वर्तमान समय का युग है। इसे तमोगुण, अज्ञानता, और अधर्म का युग माना जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार, चार युगों के चक्र में सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलीयुग आते हैं। कलीयुग का आरंभ महाभारत के बाद हुआ था और इसे मानवता के पतन का समय माना जाता है। इस युग में धर्म, सत्य, और आदर्शों की कमी होती है, और मानवता में विकृति, भ्रष्टाचार और अधर्म बढ़ जाते हैं।

कलीयुग का उत्पत्ति:

हिन्दू धर्म में चार युगों की अवधारणा है—सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, और कलीयुग। इन युगों का चक्र निरंतर चलता रहता है। कलीयुग का आरंभ महाभारत के युद्ध के बाद हुआ था, और इसे विशेष रूप से भगवान श्री कृष्ण के अवतार के समय के साथ जोड़ा जाता है। महाभारत युद्ध के बाद, जब धर्म का पतन और अधर्म का उत्थान हुआ, तब कलीयुग का आरंभ हुआ।

1. सतयुग से कलीयुग तक का मार्ग:

सतयुग को ‘सत्ययुग’ भी कहा जाता है, जो धर्म, सत्य, और आदर्शों का युग होता है। इस युग में मानवता अत्यंत धार्मिक, सत्यवादी और आदर्श थी। इसके बाद त्रेतायुग आया, जिसमें कुछ हद तक धर्म में कमी आई और कुछ अधर्म की प्रवृत्तियाँ उत्पन्न हुईं। इसके बाद द्वापरयुग आया, जिसमें धर्म और अधर्म का मिश्रण देखा गया। और फिर महाभारत युद्ध के पश्चात कलीयुग का आरंभ हुआ, जिसमें अधर्म, पाप, और विकृति का साम्राज्य है।

2. महाभारत और कलीयुग का आगमन:

महाभारत युद्ध को हिन्दू धर्म में विशेष महत्व दिया जाता है। इसे धर्म और अधर्म के संघर्ष के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। महाभारत युद्ध के बाद भगवान श्री कृष्ण ने इस बात की भविष्यवाणी की थी कि कलीयुग का आरंभ होने वाला है। महाभारत के युद्ध के समय जब पांडवों और कौरवों के बीच लड़ाई हुई, तब धर्म और अधर्म का संघर्ष अपने चरम पर था। कौरवों ने अधर्म का पालन किया, जबकि पांडवों ने धर्म का पालन किया। महाभारत के बाद भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा था कि अब कलीयुग का समय आ गया है।

3. कलीयुग के लक्षण:

कलीयुग के लक्षण विभिन्न ग्रंथों में वर्णित किए गए हैं। इसे एक अंधकारमय युग माना जाता है, जहां मानवता का पतन होता है और धर्म की घटती स्थिति होती है। कलीयुग में निम्नलिखित लक्षण पाए जाते हैं:

  • धर्म का ह्रास: इस युग में धर्म का अनुसरण करना कठिन हो जाता है, और लोग अधिकतर अधर्म की ओर बढ़ते हैं।
  • सत्य का नाश: सत्य की कमी होती है, और लोग झूठ बोलने और धोखा देने में विश्वास करते हैं।
  • मानवता का पतन: मानवता की भावना कमजोर होती है, और लोग स्वार्थी और निर्दयी हो जाते हैं।
  • भ्रष्टाचार और अत्याचार: समाज में भ्रष्टाचार और अत्याचार बढ़ जाते हैं। शोषण और अन्याय के कारण लोग परेशान रहते हैं।
  • शारीरिक और मानसिक कष्ट: इस युग में शारीरिक और मानसिक कष्टों का सामना करना पड़ता है, जैसे रोग, दुःख, और मानसिक तनाव।
  • समाज में नैतिक संकट: कलीयुग में समाज की नैतिक स्थिति कमजोर होती है, और लोग अपनी इच्छाओं और स्वार्थों के पीछे भागते हैं।

4. कलीयुग के प्रभाव:

कलीयुग के प्रभाव केवल व्यक्तिगत जीवन तक सीमित नहीं होते, बल्कि पूरे समाज और संसार पर भी असर डालते हैं। इस युग में आध्यात्मिक उन्नति की दर बहुत कम होती है, और लोग अधिकतर भौतिक सुख-संसाधनों की ओर आकर्षित होते हैं। कलीयुग में धर्म के मार्ग पर चलने के लिए कठिनाइयाँ आती हैं, लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने गीता में यह भी कहा है कि इस युग में भक्ति से उद्धार संभव है।

5. कलीयुग में आध्यात्मिक उन्नति:

कलीयुग के बावजूद हिन्दू धर्म में यह मान्यता है कि इस युग में भक्ति और साधना से भगवान के दर्शन संभव हैं। भगवद गीता में श्री कृष्ण ने कहा है कि इस युग में लोग सरलता से भक्ति से भगवान तक पहुँच सकते हैं। विशेष रूप से, नाम जप, मंत्र जाप और कीर्तन से भगवान की उपासना करने से कलीयुग , http://www.alexa.com/siteinfo/sanatanikatha.com : 

6. कलीयुग का अंत और पुनः सतयुग की शुरुआत:

कलीयुग के अंत के बाद पुनः सतयुग का आगमन होगा। हिन्दू धर्म में यह विश्वास है कि जब कलीयुग अपने चरम पर पहुँच जाएगा, तो भगवान श्री कृष्ण के अवतार के रूप में एक नया पुनःसृजन होगा, और धर्म की पुनर्स्थापना होगी। सतयुग का पुनः आरंभ होगा, और फिर चार युगों का चक्र फिर से प्रारंभ होगा।

7. कलीयुग और वर्तमान समाज:

आज के समय में कलीयुग के प्रभाव स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। समाज में बढ़ती हुई भोगवादिता, भ्रष्टाचार, और अधर्म की प्रवृत्तियाँ इसे प्रमाणित करती हैं। हालांकि, वर्तमान समय में बहुत से लोग आध्यात्मिकता और धर्म की ओर आकर्षित हो रहे हैं, और ऐसे अनेक प्रयास किए जा रहे हैं जिनसे कलीयुग के प्रभाव को कम किया जा सके।

कलीयुग की इस स्थिति में, व्यक्ति को अपनी आत्मा की उन्नति की दिशा में प्रयास करना चाहिए और धर्म, सत्य और भक्ति के मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए। केवल इस प्रकार से कलीयुग के प्रभाव को नियंत्रित किया जा सकता है और समाज को फिर से सही दिशा में अग्रसर किया जा सकता है।

कलीयुग में कौन अवतार लिया था?

कलीयुग, हिंदू धर्म के चार युगों में से एक है, जो सबसे अंत में आता है। इसके प्रारंभ का समय भगवान श्री कृष्ण के मृत्यु के बाद माना जाता है और वर्तमान में हम कलीयुग में ही निवास कर रहे हैं। इस युग में धर्म और सत्य का पतन होता है, और समाज में अराजकता, असत्य, और अन्याय फैल जाते हैं। ऐसे में भगवान के अवतार की आवश्यकता बढ़ जाती है ताकि वह धरती पर आकर धर्म की पुनर्स्थापना कर सकें और समाज को मार्गदर्शन दे सकें।

कलीयुग में भगवान ने कौन सा अवतार लिया?

कलीयुग के प्रारंभ में भगवान विष्णु के दसवें और अंतिम अवतार, जो कि Kalki अवतार कहलाता है, की भविष्यवाणी की गई है। हालांकि, इस अवतार का आगमन अभी तक नहीं हुआ है और यह भविष्य में होगा। कल्कि अवतार के बारे में विभिन्न पुराणों में वर्णन मिलता है, जैसे कि भविष्य पुराण और भागवत पुराण में।

कल्कि अवतार का वर्णन:

कल्कि अवतार भगवान विष्णु का वह अवतार होगा जो कलीयुग के अंत में, जब धरती पर पाप और अराजकता अपने चरम पर पहुंच जाएगा, तब भगवान धरती पर अवतरित होंगे। यह अवतार एक ब्राह्मण कुल में पैदा होगा और उसका उद्देश्य कलीयुग के अंत के साथ धर्म की पुनः स्थापना करना होगा।

कल्कि अवतार के आगमन का समय और स्थिति इस प्रकार से वर्णित की गई है:

  1. कल्कि अवतार का समय: भविष्य पुराण के अनुसार, कल्कि अवतार कलीयुग के अंत में होगा। इस समय समाज में अत्यधिक पाप और अनाचार फैल चुका होगा। लोग धर्म से विमुख हो चुके होंगे, और समाज में केवल असत्य और पाप का साम्राज्य होगा। भगवान कल्कि एक तेजस्वी घोड़े पर सवार होकर आएंगे और अपने अस्तबल से लोगों को धर्म का मार्ग दिखाएंगे।
  2. कल्कि की पहचान और कार्य: कल्कि अवतार के समय, वह अपने अस्तबल (घोड़े) पर सवार होंगे और उनके हाथ में एक तलवार होगी। वह धर्म की पुनर्स्थापना के लिए अपने शत्रुओं का वध करेंगे और अत्याचारियों से समाज को मुक्त करेंगे। इसके साथ ही, वह सत्य और न्याय की स्थापना करेंगे और लोगों को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करेंगे।
  3. कल्कि अवतार का उद्देश्य: कल्कि अवतार का मुख्य उद्देश्य कलीयुग में फैले पापों का नाश करना और सत्य, धर्म, और न्याय की पुनः स्थापना करना है। वह पापियों का संहार करेंगे और समाज को शांति, सद्भावना, और धर्म की राह पर चलने के लिए प्रेरित करेंगे। इस अवतार के माध्यम से भगवान विष्णु कलीयुग की समाप्ति और सतयुग के आगमन की शुरुआत करेंगे।

कल्कि अवतार का प्रभाव:

  1. पापियों का विनाश: कल्कि अवतार के आगमन के साथ पापियों और अत्याचारियों का संहार होगा। वह उन लोगों का नाश करेंगे जिन्होंने कलीयुग में धर्म, सत्य, और नैतिकता को नष्ट किया है। इसके द्वारा समाज में पुनः शांति और न्याय की स्थापना होगी।
  2. धर्म की पुनः स्थापना: कल्कि अवतार धर्म की पुनः स्थापना करेंगे। वह समाज में धर्म के मार्ग को स्पष्ट रूप से दिखाएंगे और लोगों को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करेंगे। वह सत्य और न्याय का पालन करने वाले समाज की नींव रखेंगे।
  3. सतयुग का आगमन: कल्कि अवतार के बाद, कलीयुग समाप्त होगा और सतयुग की शुरुआत होगी। सतयुग वह समय होगा जब धर्म और सत्य का पालन किया जाएगा, और लोग अपनी आत्मा की शुद्धि के लिए काम करेंगे।

कलीयुग में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की भविष्यवाणी की गई है, जो इस युग के अंत में होंगे। उनका आगमन समाज में फैली बुराईयों, पापों और अत्याचारों के विनाश के लिए होगा। वह धर्म की पुनः स्थापना करेंगे और सत्य, न्याय और शांति का प्रचार करेंगे। कल्कि अवतार का समय अभी नहीं आया है, लेकिन यह निश्चित है कि वह कलीयुग के अंत में धरती पर आएंगे और समाज को एक नया दिशा देंगे।

निष्कर्ष:

कलीयुग का उत्पत्ति महाभारत के बाद हुआ था, और यह युग वर्तमान समय का युग है। कलीयुग में धर्म का ह्रास, अधर्म का प्रसार, और मानवता का पतन होता है। हालांकि, यह युग कठिन और विकृत है, लेकिन इसमें भी भक्ति और साधना के द्वारा भगवान के पास पहुँचने का मार्ग है। कलीयुग का अंत होते ही पुनः सत्ययुग का आगमन होगा, और यह चक्र निरंतर चलता रहेगा।

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