महाभारत का आरंभ एक महान और जटिल कथा है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्राचीन और महत्त्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है। महाभारत न केवल धर्म, राजनीति, युद्ध और समाज के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालता है, बल्कि यह जीवन के गहरे सिद्धांतों और संस्कृतियों को भी उजागर करता है। महाभारत का आरंभ उन घटनाओं से हुआ जो इतिहास, संस्कृति, और धर्म की जड़ों में समाहित हैं। इस ग्रंथ की कथा मुख्य रूप से पांडवों और कौरवों के बीच की शत्रुता और युद्ध के इर्द-गिर्द घूमती है, जो कुरुक्षेत्र युद्ध के रूप में परिणत हुई।
महाभारत का आरंभ : द्रुपद और भीष्म के साथ
महाभारत की कथा का आरंभ एक ऐतिहासिक और राजनैतिक संदर्भ से जुड़ा हुआ है। इसका आरंभ होता है द्रुपद के साथ, जो एक महान राजा थे और जिनके साथ एक गहरी कश्मकश थी। महाभारत के नायक पांडवों और कौरवों के संघर्ष का जन्म द्रुपद के शाप से हुआ था। यह घटना कुछ इस प्रकार थी:
1. राजा द्रुपद और गुरु द्रोणाचार्य का संबंध
राजा द्रुपद और द्रोणाचार्य के बीच गहरे संबंध थे। द्रोणाचार्य ने युवावस्था में द्रुपद के साथ शास्त्रों और अस्तबल की शिक्षा ली थी, लेकिन जब द्रुपद राजा बने, तो उन्होंने द्रोणाचार्य को अपमानित किया और मित्रता की जगह शत्रुता को अपनाया। द्रोणाचार्य ने इस अपमान का बदला लेने की कसम खाई और यह बदला महाभारत के युद्ध के कारण बना। द्रोणाचार्य ने जब अपने शिष्य अर्जुन को द्रुपद को पराजित करने का आदेश दिया, तो अर्जुन ने उसे पूरी तरह से हराया और द्रुपद को बंदी बना लिया।
2. शाप और पांडवों का जन्म
द्रुपद को शाप मिला कि उनके द्वारा उत्पन्न किए गए पुत्रों की मृत्यु का कारण कौरव और पांडव होंगे। इसी शाप से जन्म लेने वाली महाभारत की कड़ी एक मर्मस्पर्शी घटना बन गई। द्रुपद की संतान कौरवों और पांडवों के रूप में इस शाप का प्रतीक बनी, और यह एक बड़ा युद्ध का कारण बना।
3. भीष्म पितामह और शंहस पर निर्णय

महाभारत का एक और महत्वपूर्ण मोड़ भीष्म पितामह के साथ जुड़ा है। भीष्म पितामह ने अपनी कसम खाई थी कि वह कभी भी राजगद्दी पर नहीं बैठेंगे, और उन्होंने अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए कई संघर्षों का सामना किया। यह उनका बलिदान था, जिसने महाभारत के युद्ध के लिए भूमि तैयार की। भीष्म की भूमिका इस युद्ध में निर्णायक थी, क्योंकि उन्होंने पांडवों और कौरवों के बीच संघर्ष का मध्यस्थ बनते हुए कई घटनाओं का मार्गदर्शन किया।
4. दुर्योधन और कौरवों की महत्त्वपूर्ण भूमिका
महाभारत का युद्ध कौरवों के स्वार्थ और अहंकार से शुरू हुआ। दुर्योधन, जो कौरवों का प्रमुख था, ने पांडवों के अधिकारों को नकारा और उनका अपमान किया। इसने अंततः महाभारत के युद्ध का कारण बना। दुर्योधन और उसकी माता गांधारी ने पांडवों के प्रति द्वेष और नफरत को बढ़ाया, जिससे युद्ध की जड़ें मजबूत हुईं।
महाभारत की कथा का विस्तार
महाभारत की कथा में अनेक पहलू हैं, जो गहरे अर्थ और जीवन के सिद्धांतों से जुड़े हुए हैं। यह केवल एक युद्ध की कथा नहीं है, बल्कि इसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण किया गया है। उदाहरण के लिए, अर्जुन और श्री कृष्ण का संवाद “भगवद गीता” के रूप में महाभारत का एक अमूल्य खजाना है, जो जीवन के उद्देश्य, कर्म, धर्म, और भक्ति को समझाने का एक अद्वितीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। महाभारत के आरंभ से लेकर इसके युद्ध और समापन तक, यह ग्रंथ हमारे जीवन के सत्य को उद्घाटित करता है।
5. पांडवों का वनवास
महाभारत की कहानी में एक महत्वपूर्ण घटना पांडवों का वनवास है। दुर्योधन द्वारा पांडवों को हस्तिनापुर से निकाला गया और उन्हें 13 वर्षों के वनवास का आदेश दिया गया। यह वनवास पांडवों के लिए एक परीक्षा था, जिसमें उन्होंने न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक रूप से भी संघर्ष किया। इस वनवास के दौरान, पांडवों को अनेक संघर्षों और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जो अंततः उनके महान युद्ध की ओर अग्रसर हुआ। http://www.alexa.com/siteinfo/sanatanikatha.com
6. द्रौपदी का चीर हरण
महाभारत की कथा में एक और महत्वपूर्ण घटना है द्रौपदी का चीर हरण। यह घटना पांडवों के अपमान और उनके शोषण का प्रतीक बन गई। दुर्योधन और दुषासन ने द्रौपदी को अपने महल में अपमानित किया, जिसके बाद महाभारत की युद्ध की आक्रोशित लहरें तेज हो गईं। द्रौपदी के चीर हरण के बाद पांडवों ने कौरवों से प्रतिशोध लेने का संकल्प लिया, जो युद्ध के समय में परिणत हुआ।
7. युद्ध का आरंभ और श्री कृष्ण का संदेश

महाभारत के युद्ध का आरंभ हस्तिनापुर के राजदरबार में हुआ, जहां दोनों पक्षों के बीच कई समझौतों और वार्ताओं के बावजूद युद्ध के हालात बन गए। श्री कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के मैदान में उपस्थित होकर उसे उसके कर्तव्यों और धर्म के बारे में समझाया, जिससे “भगवद गीता” का संवाद हुआ। श्री कृष्ण का यह उपदेश महाभारत की गहरी आत्मा है और यह युद्ध के बावजूद जीवन के वास्तविक सिद्धांतों की ओर मार्गदर्शन करता है।
महाभारत भारतीय इतिहास और संस्कृति का एक महानतम ग्रंथ है। यह महाकाव्य लगभग 100,000 श्लोकों में बसा हुआ है और इसमें कुल 18 पर्व होते हैं। महाभारत न केवल एक ऐतिहासिक घटनाक्रम है, बल्कि यह जीवन के प्रत्येक पहलू को छूने वाला एक दार्शनिक ग्रंथ भी है। यह ग्रंथ हमें धर्म, नीति, नायकत्व, परिवार और समाज के रिश्तों को समझाने में मदद करता है। इसके प्रमुख पात्रों में पांडव, कौरव, श्री कृष्ण, भीष्म पितामह, अर्जुन, द्रौपदी, दुर्योधन, और अन्य कई महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व शामिल हैं।
महाभारत की कथा मुख्य रूप से पांडवों और कौरवों के बीच की संघर्ष पर आधारित है, जो कुरुक्षेत्र के युद्ध में परिणत होती है। इस महाकाव्य में जहां एक ओर युद्ध की भयानकता और उसके परिणामों का वर्णन है, वहीं दूसरी ओर जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहन विचार और उपदेश भी दिए गए हैं।
महाभारत की कथा का सार

महाभारत का आरंभ कौरवों और पांडवों के बीच चल रही शत्रुता से होता है। हस्तिनापुर के राजकुमार दुर्योधन और युधिष्ठिर के बीच सत्ता की कुर्सी को लेकर विवाद था। दुर्योधन चाहता था कि वह राजा बने, जबकि युधिष्ठिर का दावा था कि वह धर्मराज के रूप में राजा बनने के योग्य हैं। इस संघर्ष ने धीरे-धीरे गहरे द्वंद्व का रूप लिया।
दुर्योधन ने पांडवों को धोखे से खेल में हराया और उन्हें वनवास भेज दिया। पांडवों का 13 वर्षों का वनवास और एक साल का अज्ञातवास दुर्योधन के लिए पर्याप्त था, लेकिन पांडव जब वापस आए, तो उन्होंने अपने हिस्से की भूमि पर दावा किया, जिसे दुर्योधन ने स्वीकार नहीं किया। इसके बाद दोनों पक्षों के बीच युद्ध छिड़ गया, जो कुरुक्षेत्र में हुआ।
कुरुक्षेत्र युद्ध का आयोजन भगवान श्री कृष्ण के उपदेशों के साथ हुआ, जिनमें उन्होंने अर्जुन को गीता का संदेश दिया। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जीवन, कर्म, और धर्म के बारे में गहन उपदेश दिया। श्री कृष्ण ने बताया कि जीवन में संघर्ष अनिवार्य है, लेकिन हमें अपने कर्तव्यों को निभाते हुए धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए।
युद्ध के दौरान कई महान योद्धाओं की मृत्यु हुई, जैसे भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कर्ण, और अन्य। युद्ध के अंत में पांडव विजयी होते हैं, लेकिन यह विजय उनके लिए शोक और पछतावे से भरी हुई थी। महाभारत युद्ध ने यह सिद्ध कर दिया कि संघर्ष और हिंसा के बावजूद अंततः केवल शांति और धर्म की ही विजय होती है।
निष्कर्ष
महाभारत का आरंभ न केवल एक युद्ध से हुआ था, बल्कि यह जीवन, धर्म, कर्तव्य और आत्म-ज्ञान के गहरे पहलुओं को समझाने की एक यात्रा है। इसके युद्ध और संघर्षों के माध्यम से, यह हमें यह सिखाता है कि जीवन के उद्देश्य को समझना और सही मार्ग पर चलना कितना महत्वपूर्ण है। महाभारत का संदेश आज भी प्रासंगिक है और यह हमें हर परिस्थिति में धर्म और कर्म के बीच संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देता है।