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MAHABHARAT KE SABSE BADA YODHA KOUN HAIN

महाभारत भारतीय महाकाव्य है जो न केवल धर्म, नीति, राजनीति, और युद्ध की गहरी शिक्षाएँ प्रदान करता है, बल्कि यह हमें युद्ध के महान योद्धाओं, उनके बल, साहस, और नायकत्व की अद्वितीय कथाएँ भी सुनाता है। महाभारत के युद्ध में कई ऐसे महान योद्धा थे जिनका नाम इतिहास में अमर है। इन योद्धाओं ने अपनी शक्ति, साहस, और वीरता से युद्ध का रुख मोड़ा।

इन योद्धाओं में से एक सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि “महाभारत का सबसे बड़ा योद्धा कौन है?” इस प्रश्न का उत्तर कई दृष्टिकोणों से भिन्न हो सकता है, क्योंकि महाभारत में हर योद्धा अपनी-अपनी जगह पर अद्वितीय था। फिर भी, अगर हम इस सवाल का उत्तर तलाशें, तो विभिन्न संदर्भों में महाभारत के सबसे बड़े योद्धा के रूप में कई नाम सामने आते हैं।

महाभारत में अनेक प्रमुख योद्धा थे, लेकिन अगर सबसे बड़े योद्धा की बात की जाए तो कुछ प्रमुख नामों में अर्जुन, भीम, दुर्योधन, कर्ण, कृष्ण, युधिष्ठिर, और अश्वत्थामा शामिल हैं। इनमें से प्रत्येक योद्धा अपनी विशिष्टताओं के कारण महाभारत के युद्ध में महत्वपूर्ण था।

1. अर्जुन:

अर्जुन को महाभारत के सबसे प्रमुख और महान योद्धा के रूप में देखा जाता है। वे पांडवों के सबसे महान धनुर्धर थे और उनका युद्ध कौशल अद्वितीय था। अर्जुन ने अपने जीवन में कई कठिन युद्ध लड़े और असंख्य योद्धाओं को परास्त किया। महाभारत के युद्ध में उनका मुख्य योगदान था, जिसमें उन्होंने कौरवों के सबसे शक्तिशाली योद्धाओं का सामना किया और कई बार उन्हें पराजित किया। अर्जुन की वीरता और उनका निरंतर संघर्ष उन्हें महाभारत के सबसे बड़े योद्धाओं में से एक बनाता है।

अर्जुन का सबसे महत्वपूर्ण योगदान श्री कृष्ण द्वारा दिए गए गीता के उपदेश से भी जुड़ा है, जिसमें उन्होंने धर्म, कर्तव्य और जीवन के उद्देश्य को समझाया। अर्जुन का दिल भीम, द्रौपदी, और उनके भाई युधिष्ठिर के साथ संघर्ष में भरपूर साहस और धैर्य से लड़ा। उनके द्वारा किए गए योगदानों की गणना नहीं की जा सकती।

2. भीम:

भीम पांडवों के दूसरे भाई थे और उनकी ताकत व वीरता के लिए प्रसिद्ध थे। भीम ने कई दुर्गम योद्धाओं को परास्त किया और महाभारत के युद्ध में उनका योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण था। भीम की शारीरिक शक्ति और उनका साहस अद्वितीय था। वे अपनी लाठी (गदा) से युद्ध करते थे और युद्ध भूमि पर उनकी उपस्थिति ही कौरवों के लिए खौफनाक होती थी।

भीम ने दुर्योधन और अन्य कौरवों के खिलाफ अपनी शक्ति का परिचय दिया। उनका युद्ध कौशल और उनकी वीरता उन्हें महाभारत के सबसे बड़े योद्धाओं में से एक बनाता है। भीम के लिए युद्ध सिर्फ अपनी विजय के लिए नहीं था, बल्कि यह उनके परिवार और भाई-बहनों के लिए था। उनका योगदान महाभारत में बहुत महत्वपूर्ण था।

3. कर्ण:

कर्ण, जो कि दुर्योधन के परम मित्र और कौरवों के सबसे बड़े योद्धा थे, महाभारत के एक और महत्वपूर्ण योद्धा थे। उनका जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण था और उन्होंने अनेक कठिनाइयों का सामना किया। कर्ण के पास अद्वितीय अस्त्र और शस्त्र थे, और उनका युद्ध कौशल बहुत ही प्रबल था। वे बिना किसी डर के अपने विरोधियों से लड़े और कभी भी अपने कर्तव्यों से नहीं डिगे। http://www.alexa.com/siteinfo/sanatanikatha.com : 

कर्ण का जीवन एक तरह से धर्म और अधर्म के बीच के द्वंद्व का प्रतीक है। वे एक महान योद्धा थे, लेकिन उनके साथ हमेशा कुछ नैतिक समस्याएँ जुड़ी रहती थीं। वे अपने जीवन में कई बार दुर्योधन की मदद के लिए अपने अस्त्रों और शक्तियों का प्रयोग करते थे, जो उन्हें एक महान योद्धा तो बनाता है, लेकिन उन्हें एक नैतिक संघर्ष का सामना भी करना पड़ता है।

4. दुर्योधन:

दुर्योधन, कौरवों का प्रमुख, भी एक महान योद्धा था। हालांकि, उनकी युद्ध नीति और उनका दृष्टिकोण महाभारत में नकारात्मक रूप से देखा जाता है, लेकिन उनकी युद्ध क्षमता को नकारा नहीं जा सकता। वे एक महान नेता थे और उन्हें अपनी सेना के प्रति निष्ठा थी। महाभारत में उनका युद्ध कौशल और उनका नेतृत्व क्षमता उन्हें एक महान योद्धा बनाती है।

5. कृष्ण:

हालाँकि श्री कृष्ण युद्ध में सीधे भाग नहीं लेते, फिर भी महाभारत में उनका योगदान सबसे बड़ा था। वे पांडवों के मार्गदर्शक और उनके सबसे बड़े सहयोगी थे। उन्होंने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया, जो न केवल महाभारत की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए एक अमूल्य धरोहर भी है। कृष्ण के बिना महाभारत का युद्ध कभी जीत नहीं सकता था। उनका योगदान न केवल रणनीतिक दृष्टि से, बल्कि मानसिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी अनमोल था।

6. अश्वत्थामा:

अश्वत्थामा, द्रौपदी के भाई और द्रोणाचार्य के पुत्र थे, और महाभारत के युद्ध में उनका बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान था। वे कौरवों के प्रमुख योद्धा थे और कई महत्वपूर्ण युद्धों में भाग लिया। हालांकि, महाभारत के अंत में उनका एक दुखद कर्म था, जब उन्होंने पांडवों के पुत्रों की हत्या कर दी। इस घटना ने उन्हें एक नकारात्मक छवि प्रदान की, लेकिन उनके युद्ध कौशल को नकारा नहीं जा सकता।

महाभारत के पितामह भीष्म (भीष्म पितामह) महाभारत के सबसे प्रमुख और सम्मानित पात्रों में से एक थे। उनका जन्म ‘देवव्रत’ के नाम से हुआ था, और वे कौरवों और पांडवों के दादा के रूप में प्रसिद्ध हैं। वे कुरु वंश के महान योद्धा और कुशल राजनीतिज्ञ थे। भीष्म का जीवन कई घटनाओं और बलिदानों से भरा हुआ था। उनके चरित्र में धार्मिकता, नीति, और कर्तव्य की गहरी समझ थी, और वे महाभारत के युद्ध में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

1. भीष्म का जन्म और परिवार

भीष्म का जन्म राजा शांतनु और गंगा देवी के पुत्र के रूप में हुआ था। उनका असली नाम देवव्रत था। गंगा, जो एक नदी देवी थीं, ने शांतनु से विवाह किया था। गंगा ने शांतनु से सात पुत्रों को जन्म दिया, लेकिन हर बार उन्होंने अपनी संतान को नदी में बहा दिया। जब आठवां पुत्र हुआ, तो शांतनु ने गंगा से इसके कारण पूछे। गंगा ने बताया कि वे उसके प्रत्येक पुत्र को एक विशेष कारण से नदी में बहा देती थीं। बाद में, गंगा ने देवव्रत को जन्म दिया और शांतनु को बताया कि यह पुत्र सबसे महान होगा और उसका जीवन विशेष होगा। शांतनु ने देवव्रत को स्वीकार किया और उनका पालन-पोषण बड़े आदर्शों के साथ किया।

2. भीष्म का ‘भीष्म प्रतिज्ञा’

भीष्म पितामह की सबसे प्रसिद्ध घटना उनकी ‘भीष्म प्रतिज्ञा’ है। जब वे युवा थे, तब शांतनु ने उनसे एक शर्त रखी कि वे कौरवों के परिवार की उत्तराधिकारी न हो, ताकि उनके शाही परिवार में कोई विवाद न हो। इस शर्त को मानते हुए देवव्रत ने एक गंभीर और कठोर प्रतिज्ञा ली, जिसके तहत उन्होंने स्वयं विवाह न करने और कोई संतान न पैदा करने का संकल्प लिया। इस प्रतिज्ञा को ‘भीष्म प्रतिज्ञा’ के नाम से जाना जाता है। उनके इस बलिदान को देखकर सभी ने उन्हें ‘भीष्म’ (जो ‘कठोर’ या ‘निराकार’ के रूप में व्याख्यायित होता है) कहा।

3. भीष्म का कर्तव्य और नैतिकता

भीष्म का जीवन कर्तव्य, निष्ठा और नैतिकता का आदर्श था। वे सदैव अपने धर्म, कर्तव्य और नीति का पालन करते थे। चाहे वे कौरवों के पक्ष में हो या पांडवों के, उन्होंने कभी भी अपने कर्तव्य से हटकर कोई कार्य नहीं किया। महाभारत के युद्ध में उनका प्रमुख योगदान था, जब वे कौरवों के सेनापति बने। उन्होंने युद्ध के दौरान न केवल अपनी वीरता का परिचय दिया, बल्कि उन्होंने पांडवों से भी सम्मानपूर्वक और निष्कलंक रूप से लड़ाई लड़ी। उनका यह कर्तव्य और नैतिकता का आदर्श भारतीय संस्कृति में अत्यधिक सम्मानित है।

4. भीष्म और द्रोणाचार्य के बीच संबंध

महाभारत के युद्ध में द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह दोनों ही अत्यंत महत्त्वपूर्ण योद्धा थे। इन दोनों ने पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध के दौरान युद्ध नीति में मार्गदर्शन किया। हालांकि, इन दोनों का युद्ध में महत्वपूर्ण स्थान था, फिर भी भीष्म ने हमेशा यह सुनिश्चित किया कि युद्ध के नियमों का पालन किया जाए। उन्होंने युद्ध के दौरान अपने और द्रोणाचार्य के बीच में आदर्श और मर्यादा बनाए रखी।

5. भीष्म का युद्ध के दौरान योगदान

महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह का योगदान बहुत महत्वपूर्ण था। उन्होंने कौरवों की सेना का नेतृत्व किया और पांडवों के खिलाफ युद्ध लड़ा। हालांकि वे जानते थे कि पांडवों के साथ लड़ाई धर्मसंगत नहीं है, फिर भी उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा के कारण कौरवों का साथ दिया। युद्ध के दौरान भीष्म ने कई महत्वपूर्ण योद्धाओं को पराजित किया और कौरवों के पक्ष में कई बड़ी जीत हासिल की।

युद्ध के अंत में, भगवान श्री कृष्ण ने भीष्म को बाणों से भरा हुआ देखा। श्री कृष्ण ने उनसे पूछा कि वे मृत्यु के कगार पर हैं, तो क्यों नहीं मृत्यु को प्राप्त करते। तब भीष्म ने कहा कि उन्हें अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने का समय आ गया था और वे केवल उस दिन मर सकते थे जब सूर्य उत्तरायण की दिशा में हो। बाद में, भगवान श्री कृष्ण के आशीर्वाद से भीष्म ने अपनी इच्छानुसार मृत्यु का समय चुना और उन्होंने अपनी प्राणों की त्याग की स्थिति में भी अपने धर्म को निभाया।

6. भीष्म की मृत्यु

भीष्म पितामह की मृत्यु महाभारत के युद्ध के अंतिम चरण में हुई। वे युद्ध में घायल हो गए थे और उनके शरीर में बाणों से हजारों घाव हो गए थे। लेकिन वे मृत्यु को नहीं प्राप्त कर सकते थे क्योंकि वे उत्तरायण के समय तक जीवित रहना चाहते थे। जब सूर्य उत्तरायण में प्रवेश किया, तब भीष्म ने अपनी मृत्यु को स्वीकार किया और उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।

7. भीष्म पितामह का आदर्श

भीष्म पितामह का जीवन एक प्रेरणा का स्रोत है। उनका जीवन कर्तव्य, निष्ठा, और बलिदान का प्रतीक था। उन्होंने अपने धर्म के प्रति अडिग रहकर समस्त विपत्तियों का सामना किया। उनका आदर्श हमें यह सिखाता है कि कर्तव्य के मार्ग पर चलना और अपने आदर्शों से कभी समझौता न करना चाहिए। उनका जीवन इस बात का प्रतीक है कि जीवन में कठिनाईयाँ आती हैं, लेकिन हमें अपने कर्तव्यों और आदर्शों के प्रति निष्ठावान रहना चाहिए।

निष्कर्ष:

महाभारत का सबसे बड़ा योद्धा कौन है, यह सवाल बहुत ही जटिल है, क्योंकि विभिन्न दृष्टिकोणों से विभिन्न योद्धाओं के योगदान को अलग-अलग तरीके से देखा जा सकता है। अर्जुन, भीम, कर्ण, दुर्योधन, कृष्ण, और अश्वत्थामा सभी महाभारत के महत्वपूर्ण पात्र थे और प्रत्येक का योगदान किसी न किसी रूप में युद्ध के परिणाम को प्रभावित करता है।

अगर हम युद्ध की दृष्टि से बात करें, तो अर्जुन और भीम के नेतृत्व में पांडवों ने कई महत्त्वपूर्ण युद्ध जीते। लेकिन, अगर हम कर्तव्य, नीति, और धर्म की दृष्टि से देखें तो श्री कृष्ण का योगदान सर्वोपरि था। महाभारत के युद्ध के दौरान उनकी रणनीति और उपदेशों ने पांडवों को विजय दिलाई। इस प्रकार, महाभारत का सबसे बड़ा योद्धा कोई एक व्यक्ति नहीं हो सकता; यह एक मिलाजुला प्रयास था, जिसमें कई योद्धाओं का योगदान था।

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