सनातनी कथा: लंका दहन
परिचय:
रामायण, हिंदू धर्म का एक प्रमुख ग्रंथ है, जो भगवान श्रीराम के जीवन और उनके कार्यों का विस्तार से वर्णन करता है। रामायण में भगवान श्रीराम की यात्रा, उनके संघर्ष, उनकी जीत और उनके आदर्शों का अत्यधिक महत्व है। रामायण की कथा में एक महत्वपूर्ण घटना लंका दहन की है, जिसमें भगवान श्रीराम ने राक्षसों के राक्षसराज रावण को पराजित किया और उसकी लंका को नष्ट कर दिया।
लंका दहन की कथा सिर्फ एक युद्ध की घटना नहीं है, बल्कि यह धर्म, सत्य और न्याय की विजय की प्रतीक है। लंका दहन के माध्यम से भगवान श्रीराम ने यह प्रमाणित किया कि अधर्म और अत्याचार का अंत होना तय है, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो। इस काव्य कथा में भगवान राम के द्वारा रावण के अत्याचारों का प्रतिकार और उसके परिणामस्वरूप लंका का विध्वंस महत्वपूर्ण है।
इस लेख में हम लंका दहन की कथा को विस्तार से समझेंगे, जिससे हमें न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से शिक्षा मिलती है, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी ध्यान केंद्रित होता है।
लंका दहन की घटना:
रामायण के अनुसार, जब राक्षसों के राजा रावण ने सीता माता का हरण किया और उन्हें लंका में बंदी बना लिया, तब भगवान श्रीराम ने अपनी पत्नी सीता को छुड़ाने के लिए युद्ध की योजना बनाई। उन्होंने समुद्र पार करके लंका पहुंचने के लिए एक पुल बनाने का आदेश दिया। भगवान श्रीराम के आदेश पर बंदर और वानर सेना ने समुद्र पर पुल बनाने का काम शुरू किया। यह पुल ‘राम सेतु’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
इस युद्ध की प्रक्रिया में रावण ने भगवान श्रीराम के खिलाफ कई बार कूटनीति और युद्ध की रणनीति का उपयोग किया, लेकिन भगवान श्रीराम ने उसे हर बार पराजित किया। अंततः जब भगवान श्रीराम ने रावण के खिलाफ युद्ध में विजय प्राप्त की, तब लंका का संहार हुआ।
लंका दहन की घटना उस समय घटित हुई जब भगवान श्रीराम ने रावण के महल में घुसकर उसे मार डाला। रावण की मृत्यु के बाद, भगवान श्रीराम ने आग के जरिए लंका को जलाया, जो उसकी पूरी शक्ति और उसके अत्याचारों का प्रतीक था। लंका दहन का यह घटना रावण के अधर्म और अन्याय का प्रतीक है, और यह भगवान श्रीराम की धर्म की स्थापना के लिए की गई बड़ी कार्रवाई थी।

लंका दहन की धार्मिक और दार्शनिक महत्वता:
लंका दहन का धार्मिक और दार्शनिक महत्व अत्यधिक है। यह केवल युद्ध का परिणाम नहीं था, बल्कि यह सत्य, धर्म और न्याय की विजय का प्रतीक था। रावण के अत्याचार और अहंकार को नष्ट करना, धर्म की रक्षा करना और मानवता के लिए भगवान राम का समर्पण ही इस घटना का मुख्य उद्देश्य था।
- धर्म की विजय:
रावण ने अपने अहंकार और दंभ के कारण न केवल भगवान श्रीराम के साथ युद्ध किया, बल्कि उसने कई देवी-देवताओं का अपमान भी किया था। लंका दहन का यह संदेश है कि अधर्म और अत्याचार का अंत निश्चित है, और धर्म की विजय हमेशा होती है। भगवान श्रीराम ने यह साबित किया कि कभी भी असत्य और अत्याचार को स्वीकार नहीं किया जा सकता। - मानवता और सद्गुण:
लंका दहन की घटना यह सिखाती है कि जीवन में हमेशा सद्गुणों का पालन करना चाहिए। रावण के विपरीत, भगवान श्रीराम ने सत्य, अहिंसा और श्रद्धा का पालन किया। उनके व्यक्तित्व में त्याग, संतोष, धैर्य और कर्तव्यनिष्ठा की विशेषताएं थीं। भगवान श्रीराम के आदर्शों को अपनाना हमें जीवन में सफलता और शांति प्राप्त करने का मार्ग दिखाता है। - अहंकार का विनाश:
रावण का अहंकार ही उसकी मृत्यु का कारण बना। वह अपनी शक्ति और समृद्धि पर घमंड करता था, और यही उसके पतन का कारण बना। लंका दहन की घटना यह सिखाती है कि जब इंसान अहंकार और घमंड में अंधा हो जाता है, तो उसकी हार निश्चित होती है। भगवान राम ने इस सत्य को सिद्ध किया। - सिद्धांत और न्याय:
लंका दहन के माध्यम से यह स्पष्ट हुआ कि भगवान श्रीराम ने अपने कर्तव्यों को पूरा किया और सत्य और न्याय का पालन किया। उन्होंने रावण को मारने का निर्णय केवल इसलिए लिया, क्योंकि रावण ने सीता माता का अपहरण किया था, जो कि एक बहुत बड़ा अपराध था। इस घटना से यह संदेश मिलता है कि अगर किसी ने किसी का अहित किया है, तो उसे उचित दंड मिलना चाहिए, ताकि समाज में न्याय की व्यवस्था बनी रहे।
लंका दहन के बाद के घटनाक्रम:
लंका दहन के बाद, भगवान श्रीराम ने रावण की मृत्यु के साथ लंका की सत्ता पर नियंत्रण स्थापित किया। उनके भाई लक्ष्मण ने रावण के पुत्र मेघनाथ (इंद्रजीत) को भी पराजित किया। सीता माता को रावण के बंदीगृह से मुक्त किया गया और भगवान श्रीराम के साथ लंका से वापस अयोध्या लौटने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
यह घटना भी यह दिखाती है कि युद्ध केवल अंतिम विकल्प होता है, और विजय प्राप्त करने के बाद भगवान श्रीराम ने रावण के परिवार और लंका के नागरिकों के साथ भी उचित व्यवहार किया। उन्होंने युद्ध के बाद किसी भी निर्दोष व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुंचाया। इस प्रकार लंका दहन के बाद भगवान श्रीराम ने आदर्श शासक होने का परिचय दिया।
संकीर्ण दृष्टिकोण और जीवन में उपयोगिता:

लंका दहन की घटना को केवल एक ऐतिहासिक घटना या युद्ध के रूप में नहीं देखना चाहिए। यह जीवन के विभिन्न पहलुओं में प्रासंगिक है, और हमारे दैनिक जीवन में भी इसके गहरे संदेश हैं।
- धैर्य और आत्मविश्वास:
भगवान श्रीराम ने लंका दहन से पहले लंबा संघर्ष किया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। इस घटना से हमें यह सिखने को मिलता है कि कठिनाइयों के बावजूद हमें अपने आत्मविश्वास और धैर्य को बनाए रखना चाहिए। - समाज में न्याय और समानता:
लंका दहन यह भी बताता है कि समाज में न्याय और समानता का पालन आवश्यक है। जब अत्याचार होता है, तो उसे समाप्त करने के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए। भगवान श्रीराम ने यह सिद्ध किया कि किसी भी अन्याय का अंत होना चाहिए। - स्वधर्म का पालन:
लंका दहन का एक और महत्वपूर्ण संदेश यह है कि हमें अपने स्वधर्म का पालन करना चाहिए। भगवान श्रीराम ने अपने कर्तव्यों को पूरा किया, चाहे वह युद्ध हो या अपने परिवार के प्रति उत्तरदायित्व। इस तरह का जीवन आदर्श जीवन कहलाता है।
लंका दहन का निष्कर्ष (Summary of Lanka Dahan)

“लंका दहन” रामायण के एक महत्वपूर्ण प्रसंगों में से एक है, जिसमें भगवान श्रीराम के भाई लक्ष्मण के अपहृत होने के बाद, भगवान राम के नेतृत्व में हनुमान जी लंका पहुंचते हैं और रावण की लंका को आग के हवाले कर देते हैं। यह घटना न केवल रामायण की ऐतिहासिकता में महत्वपूर्ण स्थान रखती है, बल्कि यह सत्य, धर्म, और न्याय की विजय के प्रतीक के रूप में भी जानी जाती है।
लंका दहन की पृष्ठभूमि
रामायण के अनुसार, रावण ने माता सीता का हरण किया था, और इस कारण श्रीराम को उन्हें छुड़ाने के लिए युद्ध करना पड़ा। रावण की राजधानी लंका में स्थित थी, और वहां तक पहुंचने के लिए श्रीराम ने वानर सेना बनाई थी, जिसमें प्रमुख रूप से हनुमान जी, अंगद, सुग्रीव, नल-नील आदि सेनानी शामिल थे। http://www.alexa.com/data/details/?url=sanatanikatha.com
जब भगवान राम और उनकी सेना समुद्र पार कर लंका पहुंचते हैं, तो वे सबसे पहले लंका के दरवाजों पर आक्रमण करते हैं। इस समय रावण के भाई विभीषण ने रावण को सीता को वापस करने की सलाह दी, लेकिन रावण ने उसकी सलाह को अनसुना किया और भगवान राम के खिलाफ युद्ध छेड़ने का निश्चय किया।
हनुमान जी का लंका प्रवेश और लंका दहन
राम के आदेश पर हनुमान जी लंका के भीतर प्रवेश करते हैं। उनका उद्देश्य रावण से सीता माता के बारे में जानकारी प्राप्त करना और राम के संदेश को सीता तक पहुंचाना था। हनुमान जी ने लंका में घुसकर सबसे पहले रावण के दरबार में जाकर सीता को राम का संदेश दिया। सीता माता ने हनुमान जी से आशा और विश्वास के साथ राम के संदेश को सुना, और फिर हनुमान जी ने रावण के दरबार में जाकर उसे ललकारा।
रावण ने हनुमान जी को पकड़कर उन्हें दंड देने की धमकी दी, लेकिन हनुमान जी ने अपना अपार बल और देवत्व प्रदर्शित करते हुए रावण की सेना को हराया और अंत में रावण के महल को ही आग लगा दी। हनुमान जी ने अपनी पूंछ को आग में जलाकर पूरे लंका नगर में आग लगा दी, जिससे लंका जल उठी। यह घटना “लंका दहन” के नाम से प्रसिद्ध है।
लंका दहन के बाद की स्थिति

हनुमान जी के लंका दहन के बाद रावण की लंका पूरी तरह से जलकर राख हो गई। हालांकि हनुमान जी ने किसी भी निर्दोष का नुकसान नहीं किया, और उन्हें देखकर रावण को समझ में आ गया कि अब उसकी हार निश्चित है। हनुमान जी की यह शक्ति और वीरता रावण के लिए एक चेतावनी थी कि राम के खिलाफ युद्ध करना उसके लिए आत्मघाती होगा।
लंका दहन के दौरान हनुमान जी के शौर्य और साहस ने यह सिद्ध कर दिया कि सत्य और धर्म की हमेशा विजय होती है। उनके इस कार्य ने रावण को उसकी विनाशकारी स्थिति का एहसास कराया। हनुमान जी ने फिर राम को अपनी सफलता की जानकारी दी और सीता माता का संदेश उन्हें सुनाया।
निष्कर्ष:
लंका दहन की कथा न केवल रामायण का एक महत्वपूर्ण भाग है, बल्कि यह जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर करने वाली घटना है। यह काव्यात्मक रूप से भगवान श्रीराम की महिमा और उनके द्वारा किए गए कार्यों का प्रतीक है। लंका दहन से हमें यह सिखने को मिलता है कि अंततः सत्य और धर्म की विजय होती है, और हमें अपने जीवन में इन सिद्धांतों को अपनाना चाहिए। इसके साथ ही, हमें यह भी समझना चाहिए कि अहंकार, अन्याय और अत्याचार का कोई स्थान नहीं है, और इनका अंत निश्चित है।