महाभारत, जिसे “पंचम वेद” भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति और धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसे महर्षि वेदव्यास द्वारा लिखा गया माना जाता है। यह न केवल एक धार्मिक और ऐतिहासिक ग्रंथ है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू को छूता है—धर्म, नीति, राजनीति, परिवार, समाज और मनुष्य के व्यक्तिगत संघर्षों को भी। वेदव्यास ने महाभारत को क्यों लिखा, यह समझने के लिए हमें उनकी पृष्ठभूमि, उस समय के समाज, और उनके उद्देश्य को समझने की आवश्यकता है।
वेदव्यास का परिचय
वेदव्यास का वास्तविक नाम कृष्ण द्वैपायन था। उन्हें वेदों का विभाजन करने के लिए जाना जाता है। “व्यास” का अर्थ होता है “विभाजन करने वाला,” और उन्होंने वेदों को चार भागों में विभाजित किया था—ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, और अथर्ववेद। उन्होंने महाभारत की रचना करके न केवल वेदांत और उपनिषदों के गूढ़ ज्ञान को सरल भाषा में प्रस्तुत किया, बल्कि इसे आम जनमानस के लिए सुलभ भी बनाया।
वेदव्यास का समय भारत के इतिहास में एक ऐसा दौर था जब समाज कई प्रकार की चुनौतियों और संघर्षों से गुजर रहा था। वह स्वयं महान ज्ञानी, तपस्वी, और विद्वान थे। उनके पास भविष्य में होने वाली समस्याओं को समझने और उसका समाधान प्रस्तुत करने की अद्भुत क्षमता थी।
महाभारत लिखने का उद्देश्य
वेदव्यास ने महाभारत को केवल एक ऐतिहासिक कथा के रूप में नहीं लिखा, बल्कि इसका उद्देश्य मनुष्य को जीवन के मूलभूत सिद्धांतों को सिखाना था। उन्होंने इसे “धर्मशास्त्र” के रूप में लिखा, जिसमें प्रत्येक वर्ग, जाति, और स्थिति के व्यक्ति के लिए कुछ न कुछ सिखने योग्य है। निम्नलिखित कारणों से उन्होंने महाभारत की रचना की:
1. धर्म की व्याख्या और स्थापना
महाभारत का मूल विषय धर्म है। उस समय समाज में धर्म का पालन सही तरीके से नहीं हो रहा था। अधर्म बढ़ रहा था, और राजा, प्रजा, और परिवार में संघर्ष बढ़ रहे थे। वेदव्यास ने महाभारत में धर्म, अधर्म, और उनके परिणामों को विस्तार से बताया। उन्होंने यह दिखाने की कोशिश की कि धर्म क्या है और इसे क्यों और कैसे पालन करना चाहिए।
2. मनुष्य के जीवन का यथार्थ चित्रण
महाभारत में जीवन के हर पहलू को छुआ गया है—चाहे वह परिवार के भीतर की राजनीति हो, सत्ता के लिए संघर्ष हो, या व्यक्तिगत नैतिकता और कर्तव्य का पालन हो। यह एक ऐसा ग्रंथ है जो दिखाता है कि मानव जीवन कितना जटिल है और इसमें सही निर्णय लेना कितना कठिन हो सकता है। http://whoisx.co.uk/sanatanikatha.com/
3. भविष्य के लिए शिक्षा
वेदव्यास ने महाभारत को एक ऐसी रचना के रूप में लिखा जिसे हर युग और समय में लोग पढ़ सकें और उससे सीख सकें। यह ग्रंथ हर काल में प्रासंगिक है क्योंकि यह केवल घटनाओं का संग्रह नहीं है, बल्कि यह जीवन के लिए एक मार्गदर्शिका है।
4. कर्म का महत्व
महाभारत में “कर्म” के महत्व को समझाया गया है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता में बताया कि “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” इसका अर्थ है कि मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करने पर है, फल पर नहीं। यह संदेश मानवता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
5. राजनीति और नीति का अध्ययन
महाभारत केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं है; यह राजनीति और शासन की भी गहरी समझ प्रदान करता है। इसमें राजाओं और उनके शासन के उदाहरण दिए गए हैं कि कैसे सही शासन किया जाना चाहिए और सत्ता के लिए अनैतिक संघर्ष के परिणाम क्या हो सकते हैं।
महाभारत की संरचना और विषयवस्तु
महाभारत विश्व का सबसे लंबा महाकाव्य है, जिसमें लगभग एक लाख श्लोक हैं। यह 18 पर्वों (अध्यायों) में विभाजित है। इसका प्रमुख विषय कौरवों और पांडवों के बीच का संघर्ष है, लेकिन इसके भीतर अनगिनत कथाएं और उपकथाएं हैं। महाभारत में न केवल युद्ध की कहानी है, बल्कि उसमें जीवन के गहरे दर्शन और समाज के नियमों का वर्णन भी है।
- आदिपर्व: इसमें महाभारत की प्रस्तावना और कथा का प्रारंभिक विवरण दिया गया है।
- सभापर्व: इसमें पांडवों के राजसूय यज्ञ और दुर्योधन द्वारा द्रौपदी का अपमान शामिल है।
- वनपर्व: इसमें पांडवों के वनवास की कथा है।
- भीष्मपर्व: इसमें महाभारत युद्ध की शुरुआत होती है।
- शांतिपर्व: इसमें युद्ध के बाद के परिणाम और धर्म की व्याख्या है।
- महाप्रस्थानिकपर्व: इसमें पांडवों की अंतिम यात्रा का वर्णन है।
इन पर्वों में न केवल घटनाओं का वर्णन है, बल्कि प्रत्येक पात्र के माध्यम से गहरे नैतिक और आध्यात्मिक संदेश भी दिए गए हैं।
गीता: महाभारत का हृदय
महाभारत के भीष्मपर्व में भगवद्गीता का वर्णन है। यह गीता केवल महाभारत की कहानी का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह पूरे ग्रंथ का सार है। इसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन, धर्म, और कर्तव्य का मर्म समझाया। गीता का संदेश हर व्यक्ति के लिए प्रासंगिक है क्योंकि यह व्यक्ति को जीवन की कठिनाइयों से निपटने के लिए मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करती है।
उस समय का सामाजिक परिप्रेक्ष्य
महाभारत का समय एक ऐसा दौर था जब समाज में अनेक समस्याएं थीं। परिवारों में आपसी कलह बढ़ रही थी, राजनीति में छल-कपट था, और धर्म के नियमों का पालन नहीं हो रहा था। वेदव्यास ने इस ग्रंथ के माध्यम से समाज को सही दिशा में ले जाने का प्रयास किया।
महाभारत के पात्र और उनके उद्देश्य
महाभारत के प्रत्येक पात्र का एक उद्देश्य है। युधिष्ठिर धर्म के प्रतीक हैं, भीम शक्ति के, अर्जुन कर्तव्य के, द्रौपदी त्याग और बलिदान के, और श्रीकृष्ण जीवन के मर्म के। वहीं, दुर्योधन और शकुनि जैसे पात्र अधर्म और ईर्ष्या के प्रतीक हैं। इन पात्रों के माध्यम से वेदव्यास ने अच्छे और बुरे दोनों के परिणामों को दिखाया है।
महाभारत की प्रासंगिकता
महाभारत केवल एक ऐतिहासिक ग्रंथ नहीं है; यह आज भी प्रासंगिक है। यह जीवन के हर पहलू में मार्गदर्शन प्रदान करता है। चाहे वह व्यक्तिगत संघर्ष हो, परिवार में कलह हो, या समाज में अन्याय हो, महाभारत हमें दिखाता है कि हमें किस प्रकार से जीवन को जीना चाहिए। http://webworth.info/sanatanikatha.com/
- परिवार और समाज में संतुलन
महाभारत हमें सिखाता है कि परिवार और समाज के बीच संतुलन बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है। - धैर्य और साहस
पांडवों ने कठिन समय में भी धैर्य और साहस नहीं छोड़ा, और यह आज के जीवन के लिए एक बड़ी सीख है। - नैतिकता और कर्तव्य
महाभारत हमें दिखाता है कि सही और गलत का चुनाव करना कितना कठिन हो सकता है, लेकिन हमें हमेशा अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए।
निष्कर्ष
महाभारत एक अद्वितीय ग्रंथ है जो मानव जीवन के हर पहलू को छूता है। वेदव्यास ने इसे केवल कथा कहने के लिए नहीं लिखा, बल्कि इसे मानवता के लिए एक मार्गदर्शिका बनाया। यह ग्रंथ हमें सिखाता है कि धर्म और अधर्म, सत्य और असत्य, और नैतिकता और अनैतिकता के बीच कैसे अंतर करें। महाभारत की कथा युगों-युगों तक जीवित रहेगी क्योंकि यह जीवन की सच्चाई का दर्पण है।