सनातनी कथा: गीता का अभिप्राय
गीता, जिसे भगवद्गीता के नाम से जाना जाता है, भारतीय संस्कृति और धर्म का एक अभिन्न हिस्सा है। यह महाभारत के भीष्म पर्व में स्थित एक अद्भुत ग्रंथ है, जो न केवल धर्म और अध्यात्म का गूढ़ ज्ञान प्रदान करता है, बल्कि मानव जीवन के समग्र उद्देश्य और पथ की भी स्पष्टता देता है। गीता का संवाद भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुआ है, जो धर्मयुद्ध के मैदान कुरुक्षेत्र में संपन्न हुआ। यह संवाद जीवन के संघर्ष, कर्तव्य, आत्मा, और मोक्ष के सिद्धांतों पर आधारित है।
गीता की रचना और उसका उद्देश्य केवल धार्मिक ग्रंथ तक सीमित नहीं है; यह एक सार्वभौमिक मार्गदर्शन है जो हर युग, समाज और व्यक्ति के लिए प्रासंगिक है। गीता के श्लोकों में दार्शनिक और आध्यात्मिक ज्ञान के साथ-साथ जीवन जीने की कला और कर्म के महत्व को भी समझाया गया है।
गीता का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

भगवद्गीता महाभारत के भीष्म पर्व का एक अंश है, जो भारतीय महाकाव्यों में से एक है। इसका संवाद उस समय आरंभ होता है जब अर्जुन युद्ध के मैदान में अपने कर्तव्य को लेकर असमंजस में पड़ जाते हैं। अर्जुन अपने ही परिवार, गुरुओं, और मित्रों के विरुद्ध युद्ध करने के विचार से विचलित हो जाते हैं। इस मानसिक स्थिति में, भगवान श्रीकृष्ण उन्हें जीवन, धर्म और कर्तव्य के गूढ़ सिद्धांत समझाते हैं।
गीता को केवल हिन्दू धर्म का ग्रंथ कहना इसकी व्यापकता को सीमित करना होगा। यह मानवता के लिए एक सार्वभौमिक शिक्षण है। इसके सिद्धांत धर्म, जाति, समय और स्थान से परे हैं। गीता ने पूरे विश्व में दार्शनिक और आध्यात्मिक चिंतन को प्रेरित किया है।
गीता का मूल संदेश
गीता का मूल उद्देश्य मानव जीवन के गहन प्रश्नों का समाधान प्रदान करना है। यह धर्म, कर्म, भक्ति, ज्ञान और मोक्ष के मार्गों पर विस्तृत चर्चा करती है। गीता में प्रमुख रूप से तीन मार्गों का उल्लेख है:
- कर्म योग: यह मार्ग बताता है कि व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का पालन निस्वार्थ भाव से करना चाहिए, बिना फल की इच्छा के। श्रीकृष्ण कहते हैं: “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”
इसका अर्थ है कि व्यक्ति का अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फल पर नहीं। यह संदेश हमें सिखाता है कि कर्तव्य का पालन ही सच्चा धर्म है। - भक्ति योग: यह मार्ग प्रेम और समर्पण का है। श्रीकृष्ण अर्जुन को सिखाते हैं कि भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण और भक्ति के माध्यम से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। भक्ति योग के माध्यम से व्यक्ति भगवान के साथ एकात्मता का अनुभव कर सकता है।
- ज्ञान योग: यह मार्ग ज्ञान और विवेक पर आधारित है। श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि आत्मा अमर और अविनाशी है।
अर्जुन का असमंजस और श्रीकृष्ण का समाधान

गीता के आरंभ में अर्जुन युद्ध के मैदान में अपने रिश्तेदारों और प्रियजनों के विरुद्ध लड़ने से हिचकिचाते हैं। वह सोचते हैं कि इस युद्ध में जीतने से प्राप्त होने वाला राज्य और धन सब निरर्थक है।
श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि वह एक योद्धा हैं, और उनका धर्म (कर्तव्य) अपने कर्तव्य का पालन करना है। वह समझाते हैं कि जीवन और मृत्यु केवल भौतिक शरीर तक सीमित हैं, आत्मा अमर है। उन्होंने अर्जुन को सिखाया कि हर व्यक्ति को अपने स्वधर्म का पालन करना चाहिए, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों।
गीता में धर्म का अभिप्राय
गीता में “धर्म” का अर्थ केवल धार्मिक अनुष्ठान या पद्धतियों तक सीमित नहीं है। इसका अर्थ व्यक्ति का कर्तव्य, नैतिकता, और सत्य के प्रति समर्पण है। धर्म का पालन करना जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है। श्रीकृष्ण कहते हैं:
“सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।”
(अध्याय 18, श्लोक 66)
इसका अर्थ है कि सभी धर्मों को छोड़कर भगवान की शरण में जाना ही सच्चा धर्म है।
गीता का दर्शन और मानवता
गीता के सिद्धांत न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यह मनुष्य को आत्मबोध और आत्मनिर्भरता का मार्ग दिखाती है। गीता सिखाती है कि व्यक्ति को अपने कर्म और विचारों के प्रति सतर्क रहना चाहिए।
गीता में वर्णित तीन गुण – सत्त्व (पवित्रता), रजस (उत्तेजना), और तमस (अज्ञान) – हर मनुष्य के स्वभाव को प्रभावित करते हैं। व्यक्ति को सत्त्व गुण को अपनाना चाहिए और रजस एवं तमस गुणों से ऊपर उठना चाहिए।
गीता का आधुनिक संदर्भ

गीता के सिद्धांत आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने हजारों वर्ष पहले थे। यह न केवल एक आध्यात्मिक ग्रंथ है, बल्कि जीवन के हर पहलू को सशक्त बनाने वाला ग्रंथ भी है।
- प्रबंधन और नेतृत्व: गीता सिखाती है कि एक सच्चा नेता वही होता है जो निस्वार्थ भाव से काम करे और अपने अनुयायियों का मार्गदर्शन करे। http://builtwith.com/sanatanikatha.com
- व्यक्तिगत विकास: गीता हमें आत्म-नियंत्रण, समर्पण, और धैर्य का महत्व समझाती है।
- मनोवैज्ञानिक संतुलन: गीता सिखाती है कि तनाव और अवसाद से कैसे निपटा जाए। यह व्यक्ति को सिखाती है कि अपने विचारों को नियंत्रित करके मानसिक शांति प्राप्त की जा सकती है।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को महाभारत के युद्ध के दौरान गीता का उपदेश क्यों दिया, यह प्रश्न भारतीय दर्शन, संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक महत्वपूर्ण विषय है। गीता के माध्यम से श्रीकृष्ण ने न केवल अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित किया, बल्कि उसे जीवन, धर्म और कर्तव्य का सही अर्थ भी समझाया। इसका उद्देश्य अर्जुन को मानसिक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाना था, ताकि वह अपने कर्तव्यों को समझ सके और सही निर्णय ले सके।
महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में लड़ा गया था, जहां कौरव और पांडव आमने-सामने थे। यह केवल एक पारिवारिक विवाद नहीं था, बल्कि धर्म और अधर्म की लड़ाई थी। युद्ध शुरू होने से पहले अर्जुन मानसिक और भावनात्मक रूप से विचलित हो गया था। उसे अपने परिवार, गुरुओं और संबंधियों के खिलाफ युद्ध करने में हिचकिचाहट हो रही थी। उसने अपने धनुष को नीचे रख दिया और युद्ध लड़ने से इनकार कर दिया। इस स्थिति में, श्रीकृष्ण, जो उसके सारथी थे, ने उसे गीता का उपदेश दिया।
अर्जुन की दुविधा

अर्जुन की मुख्य समस्या यह थी कि वह अपने रिश्तों और कर्तव्य के बीच फंस गया था। उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि युद्ध करना सही है या गलत। वह सोचने लगा कि अपने ही परिवार के लोगों को मारकर राजपद प्राप्त करना अधर्म होगा। अर्जुन ने अपने विचार श्रीकृष्ण के सामने रखे और उनसे मार्गदर्शन मांगा।
गीता का उपदेश: उद्देश्य
श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश इसलिए दिया ताकि अर्जुन:
- कर्तव्य (धर्म) को समझ सके।
- मानसिक रूप से मजबूत हो और अपनी दुविधा को दूर कर सके।
- अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए तैयार हो।
- जीवन और मृत्यु की सच्चाई को समझे।
- आत्मज्ञान प्राप्त कर सके और आत्मा के अमरत्व को समझ सके।
गीता का मुख्य संदेश
गीता का उपदेश जीवन के हर पहलू को छूता है। इसमें कर्म, धर्म, भक्ति, ज्ञान, और योग का समावेश है। नीचे गीता के कुछ मुख्य संदेश दिए गए हैं:
1. कर्म का महत्व
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपना कर्म करे, बिना फल की चिंता किए।
यह उपदेश अर्जुन के लिए था ताकि वह बिना किसी मोह और फल की चिंता के अपने युद्ध के धर्म का पालन करे।
2. आत्मा का अमरत्व
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि आत्मा न तो मरती है और न ही जन्म लेती है। आत्मा अमर और शाश्वत है।
यह संदेश अर्जुन के लिए महत्वपूर्ण था ताकि वह अपने रिश्तों की भावनात्मक बाधा को पार कर सके और युद्ध के मैदान में अपना कर्तव्य निभा सके।
3. योग का मार्ग

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को योग के तीन मुख्य मार्ग बताए:
- ज्ञान योग: आत्मा और ब्रह्मांड के सत्य को जानने का मार्ग।
- कर्म योग: निस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्यों का पालन करना।
- भक्ति योग: भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण और प्रेम।
अर्जुन के लिए कर्म योग और भक्ति योग विशेष रूप से महत्वपूर्ण थे, क्योंकि इनसे वह अपने कर्तव्य को समझ सकता था और भगवान पर विश्वास रख सकता था।
4. धर्म का पालन
गीता में धर्म का मतलब नैतिकता और कर्तव्य है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि युद्ध धर्म की रक्षा के लिए है। उन्होंने कहा कि अधर्म को समाप्त करना और धर्म की स्थापना करना हर योद्धा का कर्तव्य है।
5. मोह और अज्ञान का त्याग
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सिखाया कि मोह और अज्ञान से मुक्त होकर, एक व्यक्ति सही निर्णय ले सकता है। अर्जुन का मोह उसके रिश्तों और भावनाओं के प्रति था, जिससे वह अपना कर्तव्य भूल गया था। श्रीकृष्ण ने उसे सिखाया कि वह आत्मा के स्तर पर सोचे और सांसारिक बंधनों से मुक्त हो।
गीता का समापन
अर्जुन ने गीता के उपदेश को समझा और अपने मोह, डर और दुविधा को त्याग दिया। उसने श्रीकृष्ण की बात मानी और युद्ध के लिए तैयार हो गया।
गीता का आधुनिक महत्व

गीता केवल अर्जुन के लिए नहीं है, बल्कि यह आज भी सभी के लिए प्रासंगिक है। यह जीवन के हर पहलू में मार्गदर्शन प्रदान करती है। चाहे वह कर्तव्य का पालन हो, आत्मा की खोज हो, या मानसिक शांति की प्राप्ति—गीता का संदेश हर व्यक्ति के लिए उपयोगी है।
- नेतृत्व और निर्णय: गीता सिखाती है कि कठिन परिस्थितियों में सही निर्णय कैसे लिया जाए।
- मानसिक शांति: गीता का संदेश चिंता, भय और तनाव से मुक्ति पाने में मदद करता है।
- सामाजिक और नैतिक मूल्यों: यह व्यक्ति को सही और गलत के बीच अंतर करने की शिक्षा देती है।
निष्कर्ष
गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है; यह जीवन का दर्शन है। यह मानवता के लिए एक ऐसा प्रकाशस्तंभ है जो अज्ञानता, भय, और भ्रम के अंधकार को दूर करता है। गीता हमें सिखाती है कि जीवन का उद्देश्य केवल सांसारिक सुख और समृद्धि तक सीमित नहीं है; बल्कि आत्मा की शांति और मोक्ष की प्राप्ति है।
गीता के सिद्धांत हर युग और समाज के लिए उपयुक्त हैं। इसका प्रत्येक श्लोक जीवन का गूढ़ रहस्य और सत्य प्रकट करता है। गीता का अध्ययन व्यक्ति को न केवल आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर करता है, बल्कि उसे एक अच्छा इंसान बनने की प्रेरणा भी देता है।
गीता के इन अद्भुत शिक्षाओं को आत्मसात करके हम न केवल अपने जीवन को बल्कि समस्त समाज को भी समृद्ध और शांतिमय बना सकते हैं। यही गीता का सनातनी अभिप्राय है।