सनातनी कथा: भागवत पुराण की कथा
भागवत पुराण, जिसे श्रीमद्भागवत भी कहा जाता है, सनातन धर्म के प्रमुख 18 महापुराणों में से एक है। यह ग्रंथ भगवान विष्णु के अवतार, विशेष रूप से श्रीकृष्ण की दिव्य लीलाओं का वर्णन करता है। इसे भक्तियोग और भक्ति मार्ग का सर्वोच्च ग्रंथ माना जाता है, जो जीवन के सर्वोच्च उद्देश्य – परमात्मा से प्रेम और उनकी भक्ति – का मार्ग दिखाता है।
भागवत पुराण में कुल 12 स्कंध (अध्याय समूह) हैं, जिनमें लगभग 18,000 श्लोक हैं। इसकी रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी। इसमें भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का अद्वितीय संगम मिलता है। भागवत पुराण का उद्देश्य व्यक्ति को संसार के मोह से मुक्त कर ईश्वर की ओर प्रेरित करना है। यह कथा ब्रह्मा, नारद, शुकदेव और राजा परीक्षित के संवाद के माध्यम से आगे बढ़ती है।
भागवत पुराण की रचना और उद्देश्य

महर्षि वेदव्यास ने वेदों को विभाजित किया, महाभारत और अन्य पुराणों की रचना की, लेकिन फिर भी उन्हें आत्मिक शांति नहीं मिली। तब उनके गुरु नारद मुनि ने उन्हें सलाह दी कि वे एक ऐसा ग्रंथ रचें जो केवल भगवान की भक्ति और उनके दिव्य गुणों का गान करे। तब उन्होंने श्रीमद्भागवत की रचना की।
यह ग्रंथ मुख्यतः चार बिंदुओं पर केंद्रित है:
- ईश्वर का स्वरूप: भगवान श्रीकृष्ण ही परम ब्रह्म हैं।
- भक्ति का महत्व: भक्ति ही मोक्ष का मार्ग है।
- धर्म का पालन: धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का संतुलन।
- संसार की असारता: यह संसार क्षणभंगुर है और केवल भगवान की शरण में ही शांति है।
भागवत कथा का आरंभ
भागवत पुराण की कथा का आरंभ उस समय से होता है जब राजा परीक्षित, जो अर्जुन के पौत्र थे, को श्राप मिला कि सात दिनों में उन्हें तक्षक नाग के डंसने से मृत्यु हो जाएगी। मृत्यु का भय होने पर उन्होंने अपनी समस्त राजसी जिम्मेदारियों को छोड़कर गंगा किनारे तपस्वी जीवन का वरण किया। http://boardreader.com/linkinfo/sanatanikatha.com
राजा परीक्षित की मृत्यु के भय को दूर करने के लिए महर्षि शुकदेव ने उन्हें सात दिनों तक श्रीमद्भागवत की कथा सुनाई।
भागवत के 12 स्कंधों का सारांश
पहला स्कंध: धर्म और भक्ति का महत्व
पहले स्कंध में भगवान के गुण, उनके प्रति श्रद्धा, और मानव जीवन के उद्देश्यों का वर्णन है। इसमें बताया गया है कि किस प्रकार राजा परीक्षित ने अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी सुनकर धर्म और भक्ति का आश्रय लिया।
दूसरा स्कंध: ब्रह्मांड की रचना

इस स्कंध में ब्रह्मांड की उत्पत्ति, भगवान के विराट स्वरूप और आत्मज्ञान का वर्णन है। यह समझाया गया है कि सभी सृष्टि भगवान से उत्पन्न होती है और अंततः उन्हीं में विलीन हो जाती है।
तीसरा स्कंध: कपिल मुनि की शिक्षा
भगवान कपिल मुनि ने अपनी माता देवहूति को सांख्य योग और भक्ति का ज्ञान दिया। इसमें संसार के बंधन और उनसे मुक्त होने के उपाय बताए गए हैं।
चौथा स्कंध: ध्रुव और प्रह्लाद की कथा
चौथे स्कंध में ध्रुव और प्रह्लाद जैसे भक्तों की कथा है। ध्रुव ने कठिन तपस्या से भगवान विष्णु को प्रसन्न किया और प्रह्लाद ने अपने पिता हिरण्यकश्यप के अत्याचारों के बावजूद भगवान नारायण की भक्ति नहीं छोड़ी।
पांचवा स्कंध: सृष्टि का विस्तार
इसमें ब्रह्मांड की संरचना, लोकों की व्यवस्था और राजा भरत की कथा का वर्णन है। राजा भरत ने अपना राज्य छोड़कर भगवान की भक्ति में लीन हो गए।
छठा स्कंध: अजामिल की कथा
अजामिल, जो अपने पापमय जीवन के कारण मृत्यु के समय यमदूतों द्वारा ले जाए जा रहे थे, ने भगवान नारायण का नाम लिया। इसके कारण विष्णु के दूतों ने उन्हें मोक्ष प्रदान किया।
सातवां स्कंध: प्रह्लाद और नृसिंह अवतार

इस स्कंध में भक्त प्रह्लाद और भगवान नृसिंह की कथा है। प्रह्लाद ने सिखाया कि भगवान की भक्ति में कोई बाधा नहीं होती, चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों।
आठवां स्कंध: समुद्र मंथन और वामन अवतार
समुद्र मंथन की कथा में देवताओं और असुरों द्वारा अमृत प्राप्ति के प्रयास का वर्णन है। वामन अवतार की कथा में भगवान विष्णु ने बलि राजा से तीन पग भूमि मांगकर सम्पूर्ण सृष्टि को अपने अधीन कर लिया।
नवां स्कंध: राजाओं की वंशावली
इस स्कंध में विभिन्न राजाओं की वंशावली और उनके धर्मपरायण जीवन का वर्णन है।
दसवां स्कंध: श्रीकृष्ण की लीलाएं
दसवां स्कंध सबसे महत्वपूर्ण है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण के जन्म, बाललीलाओं, माखनचोरी, गोपियों के साथ रासलीला और कंस वध का वर्णन है। श्रीकृष्ण की लीलाएं यह सिखाती हैं कि भगवान अपने भक्तों के प्रति कितने दयालु और करुणामय हैं।
ग्यारहवां स्कंध: उद्धव गीता
भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धव को जो उपदेश दिया, उसे उद्धव गीता कहते हैं। इसमें भक्ति, ज्ञान और योग के रहस्यों का वर्णन है।
बारहवां स्कंध: कलियुग और मोक्ष
इस स्कंध में कलियुग की भविष्यवाणी और धर्म के ह्रास का वर्णन है। यह बताया गया है कि कलियुग में केवल भगवान का नाम स्मरण करने से ही मोक्ष संभव है।
भक्ति मार्ग का महत्व

भागवत पुराण में कहा गया है कि कलियुग में भक्ति ही मुक्ति का सबसे सरल और प्रभावी मार्ग है। भगवान श्रीकृष्ण का प्रेम और उनकी लीलाओं का स्मरण करना व्यक्ति के जीवन को सार्थक बनाता है।
उपसंहार
भागवत पुराण केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन के हर पहलू को छूता है। यह जीवन के उद्देश्य, कर्तव्यों और आध्यात्मिक यात्रा का मार्गदर्शन करता है। श्रीमद्भागवत सुनने या पढ़ने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर होते हैं और उसे भगवान की कृपा प्राप्त होती है।
श्रीमद्भागवत की यह कथा केवल कथावाचन नहीं है, बल्कि यह ईश्वर से जुड़ने और उनके प्रेम का अनुभव करने का माध्यम है। इसमें वर्णित लीलाएं और उपदेश जीवन को ईश्वरमय और आनंदमय बनाने के लिए प्रेरित करते हैं।
भागवत पुराण की कथा का सारांश
पहला स्कंध: भागवत पुराण का परिचय
पहले स्कंध में राजा परीक्षित की कथा से भागवत पुराण का आरंभ होता है। राजा परीक्षित को श्राप मिलता है कि सात दिनों के भीतर उन्हें तक्षक नाग के काटने से मृत्यु होगी। अपने जीवन के अंतिम सात दिनों में वे अपने लिए मोक्ष का मार्ग खोजने के उद्देश्य से महर्षि शुकदेव से भागवत पुराण की कथा सुनते हैं।
यह स्कंध भक्ति और ज्ञान का महत्व बताता है। इसमें बताया गया है कि मनुष्य को मृत्यु के भय से नहीं, बल्कि अपने जीवन को सार्थक बनाने के उद्देश्य से भक्ति में लीन होना चाहिए।
दूसरा स्कंध: सृष्टि का रहस्य

दूसरे स्कंध में ब्रह्मांड की सृष्टि का वर्णन किया गया है। इसमें बताया गया है कि भगवान विष्णु ने इस सृष्टि की रचना कैसे की। तीन मुख्य देव – ब्रह्मा (सृष्टि के निर्माता), विष्णु (पालक), और शिव (संहारक) – भगवान के विभिन्न स्वरूप हैं।
यह स्कंध यह समझाता है कि सृष्टि के सभी कार्य ईश्वर के आदेश और शक्ति से संचालित होते हैं।
तीसरा स्कंध: कपिल मुनि और देवहूति की कथा
तीसरे स्कंध में कपिल मुनि और उनकी माता देवहूति की कथा है। कपिल मुनि ने अपनी माता को सांख्य योग का उपदेश दिया। यह योग व्यक्ति को आत्मा और शरीर के अंतर को समझने में मदद करता है और उसे आध्यात्मिक ज्ञान की ओर प्रेरित करता है।
यह कथा हमें सिखाती है कि आत्मा अमर है और व्यक्ति को अपनी आत्मा को परमात्मा के साथ जोड़ने का प्रयास करना चाहिए।
चौथा स्कंध: ध्रुव और प्रह्लाद की कथाएं
चौथे स्कंध में ध्रुव और प्रह्लाद जैसे भक्तों की कहानियां हैं। ध्रुव, एक बालक होते हुए भी भगवान विष्णु के प्रति अपनी निष्ठा और भक्ति के कारण अमर हो गए। प्रह्लाद, अपने पिता हिरण्यकश्यपु के अत्याचारों के बावजूद, भगवान विष्णु में अपनी अटूट आस्था के लिए प्रसिद्ध हैं।
ये कहानियां हमें सिखाती हैं कि सच्ची भक्ति किसी भी कठिनाई या बाधा के बावजूद भगवान तक पहुंचने का सबसे सरल मार्ग है।
पांचवां स्कंध: राजा भरत की कथा

पांचवां स्कंध राजा भरत की कथा प्रस्तुत करता है। राजा भरत अपने जीवन में मोक्ष प्राप्त करने के लिए तपस्या करते हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश अपनी भक्ति के दौरान वे एक हिरण के बच्चे के प्रति आसक्त हो जाते हैं। इसके कारण अगले जन्म में वे हिरण के रूप में जन्म लेते हैं।
यह कथा हमें सिखाती है कि भक्ति के मार्ग पर हमें अपनी निष्ठा और ध्यान को स्थिर रखना चाहिए। भक्ति में किसी भी प्रकार की आसक्ति मोक्ष प्राप्ति में बाधा बन सकती है।
छठा स्कंध: अजयामिल की कथा
छठे स्कंध में अजयामिल की कथा आती है। अजयामिल, एक पापी व्यक्ति, जीवन के अंतिम क्षणों में अपने पुत्र नारायण को पुकारते हैं। इस नाम का उच्चारण करने के कारण, भगवान विष्णु के दूत उसे नरक से बचाते हैं।
यह कथा हमें सिखाती है कि भगवान का नाम मात्र स्मरण करने से भी मोक्ष प्राप्त हो सकता है।
सातवां स्कंध: नरसिंह अवतार और भक्त प्रह्लाद
सातवां स्कंध नरसिंह अवतार की कथा प्रस्तुत करता है। भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यपु का वध किया और अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की।
यह स्कंध सिखाता है कि भगवान हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और अधर्म को समाप्त करते हैं।
आठवां स्कंध: समुद्र मंथन और वामन अवतार

आठवें स्कंध में समुद्र मंथन की कथा और वामन अवतार का वर्णन है। समुद्र मंथन से अमृत की प्राप्ति होती है, और वामन अवतार में भगवान विष्णु ने बलि राजा को तीन पग भूमि में सबकुछ दान करने के लिए प्रेरित किया।
यह स्कंध दान, तपस्या, और धर्म के महत्व को रेखांकित करता है।
नौवां स्कंध: विभिन्न राजाओं की कथाएं
नौवें स्कंध में राजा हरिश्चंद्र, राजा भरत, और राजा अंबरीष जैसे धर्मपरायण राजाओं की कहानियां हैं। ये कहानियां धर्म और सत्यनिष्ठा के आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।
दसवां स्कंध: श्रीकृष्ण की लीलाएं
दसवां स्कंध भागवत पुराण का सबसे महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध भाग है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण के जन्म, बाललीलाओं, गोपियों के साथ रासलीला, कंस वध, और महाभारत की भूमिका तक की घटनाओं का वर्णन है।
इस स्कंध का मुख्य उद्देश्य श्रीकृष्ण की महिमा को व्यक्त करना और यह समझाना है कि भगवान के प्रति प्रेम और समर्पण ही भक्ति का उच्चतम रूप है।
ग्यारहवां स्कंध: उद्धव गीता

ग्यारहवें स्कंध में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अपने प्रिय मित्र उद्धव को दिए गए उपदेश, जिन्हें “उद्धव गीता” कहा जाता है, शामिल हैं। यह गीता व्यक्ति को योग, ज्ञान, और भक्ति का महत्व सिखाती है।
बारहवां स्कंध: कलियुग का वर्णन और निष्कर्ष
बारहवें स्कंध में कलियुग के लक्षणों का वर्णन है। इसमें यह बताया गया है कि कलियुग में धर्म और नैतिकता का ह्रास होगा, परंतु भक्ति मार्ग से व्यक्ति कलियुग की बुराइयों से बच सकता है।
भागवत पुराण का निष्कर्ष
भागवत पुराण हमें सिखाता है कि:
- भक्ति ही मोक्ष का सरल मार्ग है – भगवान के प्रति प्रेम और समर्पण से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो सकता है।
- सत्कर्म और धर्म का पालन आवश्यक है – जीवन में सच्चाई, निष्ठा, और धर्म का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- आसक्ति से बचें – भक्ति करते समय सांसारिक चीजों के प्रति आसक्ति व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में बाधा बन सकती है।
- ईश्वर सर्वत्र हैं – भगवान हर जीव और हर वस्तु में विद्यमान हैं। इसलिए सभी के प्रति प्रेम और करुणा रखें।
- कलियुग में हरिनाम का महत्व – कलियुग में भगवान के नाम का जप ही मोक्ष का सबसे सरल साधन है।
भागवत पुराण का मुख्य संदेश यह है कि जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य भगवान के साथ मिलन (मोक्ष) प्राप्त करना है, और यह केवल भक्ति के माध्यम से संभव है।
निष्कर्षतः, भागवत पुराण एक ऐसा दिव्य ग्रंथ है जो व्यक्ति को जीवन जीने की कला सिखाता है, भक्ति का मार्ग दिखाता है और उसे आत्मज्ञान और मोक्ष की ओर प्रेरित करता है।