सनातनी कथा में सृष्टि की उत्पत्ति
सनातन धर्म, जिसे हिंदू धर्म भी कहा जाता है, विश्व के प्राचीनतम धर्मों में से एक है। इसमें सृष्टि की उत्पत्ति को लेकर अनेक कथाएं, ग्रंथ और मान्यताएं हैं। इन कथाओं में सृष्टि के आरंभ, ब्रह्मांड की संरचना और जीवन के प्रारंभ को विस्तृत रूप में वर्णित किया गया है। ये कथाएं न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि इनमें दार्शनिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गहराई भी विद्यमान है।
सनातन धर्म के अनुसार, सृष्टि की उत्पत्ति को समझने के लिए मुख्य रूप से वेद, पुराण और उपनिषदों का अध्ययन किया जाता है। इनमें से प्रत्येक ग्रंथ में सृष्टि की उत्पत्ति को विभिन्न दृष्टिकोणों से प्रस्तुत किया गया है।
सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन वेदों में
वेद सनातन धर्म के प्राचीनतम ग्रंथ हैं। इनमें ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद सम्मिलित हैं। ऋग्वेद के “नासदीय सूक्त” (दसवें मंडल का 129वां सूक्त) में सृष्टि की उत्पत्ति का गहन और दार्शनिक वर्णन है।
ऋग्वेद कहता है कि सृष्टि की उत्पत्ति से पहले कुछ भी नहीं था – न तो आकाश था, न पृथ्वी, न दिन था और न रात। यह एक शून्य था, जिसे “असत्” कहा गया है। इस शून्य में एक अदृश्य और असीम शक्ति (परमात्मा) विद्यमान थी। इसी शक्ति से “सत्” (सत्ता) का प्रादुर्भाव हुआ।
“नासदीय सूक्त” में यह भी कहा गया है कि सृष्टि की उत्पत्ति के समय ब्रह्मांड में केवल एक ही ऊर्जा थी, जिसे “एकम सत्” कहा गया। इस ऊर्जा से ही सृष्टि के विभिन्न तत्व – जल, अग्नि, वायु, आकाश और पृथ्वी – उत्पन्न हुए।
उपनिषदों में सृष्टि का वर्णन
उपनिषदों में सृष्टि की उत्पत्ति को अधिक गूढ़ और दार्शनिक रूप में समझाया गया है। यहां ब्रह्म (परम सत्य) को सृष्टि का मूल स्रोत माना गया है।
- ब्रह्म सूत्र: “अहं ब्रह्मास्मि” – ब्रह्म ही सत्य है, और सारा ब्रह्मांड उसी से उत्पन्न हुआ है।
- तैत्तिरीय उपनिषद: इसमें बताया गया है कि ब्रह्म से आकाश उत्पन्न हुआ, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और जल से पृथ्वी बनी। इन्हीं पांच तत्वों से सृष्टि का निर्माण हुआ। http://builtwith.com/sanatanikatha.com
- छांदोग्य उपनिषद: यह बताता है कि ब्रह्म को “सत्” कहा गया है, और “सत्” से ही पूरी सृष्टि की उत्पत्ति हुई है।
पुराणों में सृष्टि की उत्पत्ति
सनातन धर्म के 18 मुख्य पुराणों में सृष्टि की उत्पत्ति को विस्तारपूर्वक वर्णित किया गया है। इनमें ब्रह्मा, विष्णु और शिव की त्रिमूर्ति को सृष्टि के निर्माण, पालन और संहार का आधार माना गया है।
ब्रह्मा द्वारा सृष्टि निर्माण
ब्रह्मा को सृष्टि का निर्माता कहा गया है। पुराणों के अनुसार, विष्णु भगवान ने “योगनिद्रा” में लेटे हुए ब्रह्मांड के मूल कारण की कल्पना की। उनकी नाभि से एक कमल का फूल प्रकट हुआ, और उसी कमल से ब्रह्मा का जन्म हुआ।
- ब्रह्मा का कार्य: ब्रह्मा ने सबसे पहले चार ऋषियों – सनक, सनन्दन, सनातन और सनतकुमार – को उत्पन्न किया। इसके बाद ब्रह्मा ने प्रजापतियों और अन्य जीवों को उत्पन्न किया।
- सप्त ऋषि: ब्रह्मा ने सात ऋषियों को उत्पन्न किया, जिन्होंने संसार को ज्ञान और धर्म का मार्ग दिखाया।
शिव और शक्ति की भूमिका
शिव को सृष्टि के संहारकर्ता और शक्ति (पार्वती) को ऊर्जा का स्रोत माना गया है। शिव पुराण में बताया गया है कि जब भी सृष्टि में असंतुलन होता है, शिव अपने तांडव नृत्य से उसे समाप्त करते हैं और पुनः संतुलन स्थापित होता है।
विष्णु की भूमिका
विष्णु को पालनकर्ता माना गया है। उन्होंने सृष्टि की रक्षा और पालन के लिए समय-समय पर अवतार लिए। पुराणों में उनकी दस अवतारों की कथा प्रचलित है।
सांख्य दर्शन में सृष्टि की उत्पत्ति को “प्रकृति” और “पुरुष” के सिद्धांत से समझाया गया है।
- प्रकृति: यह मूलभूत शक्ति है, जिससे सारा ब्रह्मांड उत्पन्न हुआ।
- पुरुष: यह शुद्ध चेतना है, जो प्रकृति को सक्रिय करती है।
सांख्य दर्शन के अनुसार, जब प्रकृति और पुरुष का संयोग होता है, तो सृष्टि का आरंभ होता है।
भगवद्गीता में सृष्टि की उत्पत्ति
भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को सृष्टि के रहस्यों का ज्ञान दिया है। उन्होंने कहा, “मैं ही सृष्टि का मूल कारण हूं। यह मेरी शक्ति है, जिससे सब कुछ उत्पन्न हुआ है।”
आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सनातन कथाएं
आधुनिक विज्ञान के “बिग बैंग थ्योरी” के अनुसार, सृष्टि की उत्पत्ति एक विशाल विस्फोट (Big Bang) से हुई थी। अगर इसे सनातन कथाओं से जोड़कर देखा जाए, तो “ब्रह्म” को ऊर्जा का स्रोत माना गया है, जो बिग बैंग की ऊर्जा के समान है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण
सनातन धर्म में सृष्टि की उत्पत्ति को केवल भौतिक प्रक्रिया नहीं माना गया है, बल्कि इसे एक आध्यात्मिक यात्रा के रूप में देखा गया है। सृष्टि का उद्देश्य आत्मा (जीवात्मा) और परमात्मा के बीच संबंध स्थापित करना है।
सनातन कथा में सृष्टि की उत्पत्ति का महत्व
सनातन धर्म, जिसे हिंदू धर्म भी कहा जाता है, दुनिया के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। इसमें सृष्टि की उत्पत्ति से संबंधित कई कथाएँ और पौराणिक कहानियाँ पाई जाती हैं, जो न केवल ब्रह्मांड की उत्पत्ति और संरचना के बारे में दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं, बल्कि मानव जीवन, प्रकृति और ईश्वर के साथ संबंध की गहरी समझ भी प्रदान करती हैं। सनातन धर्म में सृष्टि की उत्पत्ति का महत्व दार्शनिक, धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से बेहद गहन है।
1. सृष्टि की उत्पत्ति का वर्णन और उसकी पृष्ठभूमि
सनातन धर्म में सृष्टि की उत्पत्ति से संबंधित मुख्य कथाएँ वेदों, उपनिषदों, पुराणों और महाभारत जैसे ग्रंथों में वर्णित हैं। इनमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश (त्रिमूर्ति) के माध्यम से सृष्टि की रचना, पालन और संहार का चक्र समझाया गया है।
ऋग्वेद में सृष्टि की उत्पत्ति
ऋग्वेद के “नासदीय सूक्त” (ऋग्वेद 10.129) में सृष्टि के प्रारंभिक स्वरूप को लेकर गहन और दार्शनिक विचार व्यक्त किए गए हैं। इसमें कहा गया है कि सृष्टि के आरंभ में केवल एक असीम शून्य था, जिसे “तत्” कहा गया। कोई दिन-रात, काल-स्थान या आकाश-पृथ्वी नहीं था। यह सूक्त इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि सृष्टि की उत्पत्ति किस प्रकार हुई, और यह जानने का प्रयास करता है कि इस प्रक्रिया के पीछे कौन था।
पुराणों में सृष्टि की कथा
पुराणों में सृष्टि की उत्पत्ति को अधिक कहानी और प्रतीकात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
- ब्रह्मा की रचना: ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता माना जाता है। विष्णु के नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्मा प्रकट होते हैं और सृष्टि का निर्माण करते हैं।
- समुद्र मंथन: समुद्र मंथन की कथा में सृष्टि के विभिन्न तत्वों की उत्पत्ति का वर्णन मिलता है।
- दशावतार और सृष्टि का विकास: विष्णु के दशावतार सृष्टि के क्रमिक विकास और जीवन के विविध चरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
2. सृष्टि की उत्पत्ति का धार्मिक महत्व
सनातन धर्म में सृष्टि की उत्पत्ति को धर्म, कर्म और मोक्ष से जोड़ा गया है।
धर्म
सृष्टि का उद्देश्य धर्म की स्थापना करना है। धर्म का अर्थ केवल धार्मिक क्रियाकलाप नहीं, बल्कि प्रकृति और समाज के साथ संतुलन बनाए रखना है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश के कार्यों में संतुलन का महत्व स्पष्ट होता है।
कर्म और पुनर्जन्म
सृष्टि की उत्पत्ति के साथ कर्म और पुनर्जन्म का चक्र आरंभ होता है। प्रत्येक जीव अपने कर्मों के आधार पर सृष्टि के इस चक्र का हिस्सा बनता है।
मोक्ष
सनातन धर्म में सृष्टि की उत्पत्ति और विनाश को जीवन-मृत्यु के चक्र का हिस्सा माना जाता है। यह चक्र तब तक चलता रहता है जब तक जीवात्मा मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेती।
3. दार्शनिक दृष्टिकोण
सनातन धर्म में सृष्टि की उत्पत्ति केवल ब्रह्मांड की रचना की कहानी नहीं है, बल्कि यह जीवन, आत्मा और ब्रह्म की समझ को गहराई से प्रकट करती है।
अद्वैत वेदांत और सृष्टि
अद्वैत वेदांत के अनुसार, सृष्टि का कोई वास्तविक अस्तित्व नहीं है; यह ब्रह्म का ही एक रूप है। यह दृष्टिकोण यह बताता है कि सृष्टि केवल माया है, और ब्रह्म ही परम सत्य है।
सांख्य दर्शन
सांख्य दर्शन सृष्टि की उत्पत्ति को प्रकृति (प्रकृति और पुरुष) के संघ से समझाता है। प्रकृति निष्क्रिय है, जबकि पुरुष सजीव तत्व है। दोनों के संयोजन से सृष्टि की उत्पत्ति होती है।
योग दर्शन
योग दर्शन में सृष्टि को आत्मा की यात्रा का माध्यम माना गया है। इसमें कहा गया है कि सृष्टि का हर पहलू आत्मा को मोक्ष की ओर अग्रसर करने में सहायक है।
4. सृष्टि की उत्पत्ति का सांस्कृतिक महत्व
सनातन धर्म में सृष्टि की उत्पत्ति के विषय को भारतीय संस्कृति, कला, संगीत और साहित्य में भी गहराई से दर्शाया गया है।
साहित्य और कला में सृष्टि
रामायण, महाभारत, और पुराणों में सृष्टि की कथाएँ न केवल धार्मिक ग्रंथों का हिस्सा हैं, बल्कि इनसे भारतीय साहित्य और नाट्यकला का विकास भी हुआ है।
त्योहार और परंपराएँ
सृष्टि से संबंधित घटनाओं को कई त्योहारों और परंपराओं में मनाया जाता है, जैसे नवरात्रि (सृष्टि की देवी दुर्गा की पूजा), होली (प्रकृति और सृष्टि के तत्वों का उत्सव), और दिवाली (अंधकार पर प्रकाश की विजय)।
5. विज्ञान और सृष्टि की कथा
सनातन धर्म की सृष्टि संबंधी अवधारणाएँ आधुनिक विज्ञान के कुछ सिद्धांतों के साथ भी मेल खाती हैं।
- सृष्टि और बिग बैंग सिद्धांत: नासदीय सूक्त में वर्णित शून्य और अराजकता की स्थिति को बिग बैंग सिद्धांत से जोड़ा जा सकता है।
- जीवन का क्रमिक विकास: विष्णु के दशावतार को जीवन के विकास के क्रमिक चरणों के प्रतीक के रूप में देखा जा सकता है।
6. सृष्टि की कथा और पर्यावरण
सनातन धर्म में सृष्टि की उत्पत्ति और प्रकृति का घनिष्ठ संबंध है।
- प्रकृति की पूजा: सनातन धर्म में वृक्ष, नदियाँ, पहाड़, और पशु-पक्षियों को देवता के रूप में देखा जाता है।
- संतुलन और संरक्षण: सृष्टि की उत्पत्ति की कथा सिखाती है कि हमें पर्यावरण का सम्मान करना चाहिए और इसे संरक्षित करना चाहिए।
निष्कर्ष
सनातन धर्म में सृष्टि की उत्पत्ति केवल ब्रह्मांड के निर्माण की कहानी नहीं है, बल्कि यह जीवन के गहनतम प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास है। यह मानव और प्रकृति के बीच के संबंध, आत्मा और परमात्मा की खोज, और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रस्तुत करती है। सृष्टि की कथा न केवल धार्मिक ग्रंथों का हिस्सा है, बल्कि यह मानव जीवन के हर पहलू में गहराई से समाहित है।
सनातन धर्म में सृष्टि की उत्पत्ति को अनेक दृष्टिकोणों से समझाया गया है। चाहे वह वेदों का “नासदीय सूक्त” हो, पुराणों की त्रिमूर्ति हो, या उपनिषदों की ब्रह्म की व्याख्या – प्रत्येक कथा में यह सिखाया गया है कि सृष्टि का आधार एक दिव्य शक्ति है। इन कथाओं में न केवल ब्रह्मांड के निर्माण का विवरण मिलता है, बल्कि यह भी समझाया गया है कि सृष्टि का हर कण उसी दिव्यता का अंश है।
इस प्रकार, सनातन धर्म की सृष्टि उत्पत्ति की कथाएं न केवल ब्रह्मांड की उत्पत्ति को समझने का प्रयास हैं, बल्कि मानव जीवन को भी उसकी आध्यात्मिक जड़ों से जोड़ने का माध्यम हैं।