google-site-verification=fvQbpKaydZHJgt7gpYfN9AZQNESysLU3DLqB65e_3EE

SANATANI DHARM KA AWISHAKAAR

संस्कृत में “सनातन धर्म” का अर्थ है “शाश्वत” या “अनन्त धर्म”। इसका कोई एक संस्थापक नहीं है, बल्कि यह धर्म हजारों वर्षों की संस्कृति, परंपराओं और जीवनदर्शन का समग्र रूप है, जो प्राचीन भारत में विकसित हुआ। सनातन धर्म की शुरुआत का कोई निश्चित समय नहीं है, और इसे मानव सभ्यता के साथ ही जोड़ा जाता है, जो इसे सबसे पुराना धर्म बनाता है। इसे हिंदू धर्म के नाम से भी जाना जाता है, और इसे प्राचीन ग्रंथों, वेदों, उपनिषदों, महाभारत, रामायण और पुराणों के माध्यम से जाना जा सकता है।

सनातन धर्म का निर्माण किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं किया गया, बल्कि यह ऋषियों, मुनियों और योगियों की विभिन्न शिक्षाओं का संकलन है। इन महान संतों ने प्रकृति, सृष्टि और आत्मा के तत्वों का अध्ययन किया और उन्हें अपने शिष्यों और आम जनता तक पहुंचाया। इस प्रक्रिया में सदियों तक ज्ञान का संचय और विस्तार होता रहा, जिसके परिणामस्वरूप सनातन धर्म का विस्तार हुआ।

सनातन धर्म का मूल विचार

सनातन धर्म का प्रमुख उद्देश्य मानव जीवन को प्रकृति और ईश्वर के साथ सामंजस्य में जीना है। इसके मुख्य सिद्धांतों में सत्य, अहिंसा, धर्म, कर्म और मोक्ष की प्राप्ति शामिल है। सनातन धर्म का मानना है कि हर आत्मा एक ही परमात्मा का अंश है और यह संसार एक अस्थायी पड़ाव है।

  1. सत्य – सत्य को सनातन धर्म का मुख्य स्तम्भ माना जाता है। इसका अर्थ है कि व्यक्ति अपने विचारों, वचनों और कर्मों में सत्य का पालन करें।
  2. अहिंसा – अहिंसा का सिद्धांत बताता है कि किसी भी जीव को क्षति पहुंचाना पाप माना गया है।
  3. धर्म – धर्म का अर्थ होता है कर्तव्यों का पालन करना। यह धर्म ही है जो समाज में शांति और स्थिरता का निर्माण करता है।
  4. कर्म – सनातन धर्म कर्म के सिद्धांत पर विश्वास करता है। व्यक्ति के द्वारा किए गए कर्मों का प्रभाव उसके वर्तमान और भविष्य पर पड़ता है।
  5. मोक्ष – मोक्ष का अर्थ है आत्मा का परमात्मा से मिलन। यह संसार से मुक्ति प्राप्त करने की अंतिम अवस्था मानी जाती है।

सनातन धर्म का विकास और इसका उद्देश्य

सनातन धर्म का विकास मानवता की आध्यात्मिक उन्नति और सत्य की खोज के उद्देश्य से हुआ। ऋषियों ने ध्यान और तपस्या के माध्यम से विभिन्न गूढ़ रहस्यों को जाना और समझा। उनके ज्ञान को वेदों, उपनिषदों, महाभारत, रामायण और पुराणों में संजोया गया। इन ग्रंथों में प्रकृति, विज्ञान, खगोल शास्त्र, आयुर्वेद, और आत्मा के रहस्यों का उल्लेख किया गया है, जिससे ज्ञात होता है कि सनातन धर्म केवल धार्मिक पहलुओं तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें विज्ञान और दर्शन का भी समावेश था।

  1. वेदों की रचना – सनातन धर्म के सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद माने जाते हैं, जो लगभग 4000 वर्ष पुराने माने जाते हैं। ये चार वेद हैं – ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद। इन वेदों में मन्त्रों, कर्मकाण्डों, यज्ञों, और देवताओं की उपासना की विधियों का वर्णन किया गया है।
  2. उपनिषद – उपनिषद वेदों के अंतिम भाग हैं। इनका मुख्य विषय आत्मा और ब्रह्म का ज्ञान है। उपनिषद आत्मज्ञान, ध्यान, और आत्मा के स्वरूप की चर्चा करते हैं।
  3. महाकाव्य और पुराण – महाभारत, रामायण, और पुराणों के माध्यम से नैतिकता, आदर्श जीवन शैली, और जीवन के रहस्यों का वर्णन किया गया है।

सनातन धर्म का उद्देश्य और प्रासंगिकता

सनातन धर्म का उद्देश्य व्यक्ति को आत्मज्ञान और ईश्वर की प्राप्ति की ओर ले जाना है। यह धर्म समाज में समता, सहयोग, और शांति की स्थापना पर जोर देता है। सनातन धर्म ने ही हिंदू संस्कृति और भारतीय सभ्यता को आकार दिया है और इसे भारतीय जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।

अंततः, सनातन धर्म किसी भी एक व्यक्ति या समय का निर्माण नहीं है; यह मानवता के उत्थान, आत्मज्ञान और प्रकृति के साथ सामंजस्य के विचारों का संग्रह है।

सनातनी धर्म में श्री कृष्णा अर्जुन को क्या होने वाला हैं वह सब कुछ जानते हैं क्युकी वह सब आचरण चंचलता के कारन सहज और दुर्गम चुनौती के अनुसार बदलना चाहता था , क्युकी मन की प्रबृति ही ऐसे होती हैं की इसको स्थिर करना कठिन हैं , क्युकी मन निरतर परिवर्तिन शील हैं | सत्रु सेना में निकट सम्बन्धियों तथा पूर्वजो के युद्ध के लिए एक मुद्रा में तैनात देखकर अर्जुन तुरंत इस सीमा तक बदल गए मनो वह अर्जुन रहे ही नहीं | http://www.alexa.com/siteinfo/sanatanikatha.com 

वह वीरता , वह जोश नजर ही नहीं आया और शोकग्रस्त मुद्रा धारण कर बोले मैं युद्ध नहीं करूँगा | अंतर्यामी श्री कृष्णा हँसते हुए इस समय जो बचन बोले वही गीता का सार सारांश हैं | अत इसका संक्षिप वर्णन जरुरी हैं | भगवान बोले , हे अर्जुन तुम्हे इस असमय में यह मोह किस कारन प्राप्त हुआ हैं ? यह अन्याय , स्वर्ग अवरोधक और अपयशदायक हैं |

नपुंसकता को मत प्राप्त हो तुझमे यह उचित नहीं लगता | हे पार्थ ! ह्रदय की तुछ्या दुर्वलता को त्याग कर उठो और युद्ध कोरो , आगे जाकर अर्जुन बोले , कृपणता रूप दोष से अपह्त हुए स्वभाव वाला तथा धर्म के बारे में मोच्छित हुआ में आपसे पूछता हूँ की जो निश्चित कल्याण करक हैं , वह मुझसे कहिये – में आपका शिष्य हूँ |

इसलिए आपके शरणागत में मुझे शिक्षा दीजिये | पृथिवी में निष्कंटक समृद्ध राज्य को और देवताओ और अधिपति को भी प्राप्त करके जो मेरी इन्द्रियों को सूखने वाले शोक को समाप्त करे | ऐसा उपाय में नहीं देखता श्री कृष्णा बोले तुम अशोच्या लोग के लिए शोक करते हो और पंडित की तरह बातें करते हो पंडित तो मरे हुए तथा जीवित दोनों के लिए शोक नहीं करते |

और न तो ऐसा हैं की में किसी काल में नहीं था , तुम नहीं अथवा यह महाराज लोग नहीं थे और न ही ऐसा हैं की इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे वास्तव में असत का अस्तित्व नहीं हैं , सात का नाश नहीं हैं | तत्वा दर्शियों इन दोनों का ही स्वरुप देखा हैं | सनातनी धर्म में गीता में श्री कृष्णा भगवान् ने अपने उपदेश का उट्घाटन मोह और शोक दोनों निशाना साध कर लिया हैं |

क्युकी अर्जुन इन दोनों से ग्रस्त हैं , अर्जुन ही क्या सारा संसार ही इन दोनों की लपेट में रहता हैं | मोह ही माया हैं , माया से तातपर्य जो मनुष्य को वास्तविकता का ज्ञान नहीं होने देती यही प्रकृति हैं जो 24 तत्व , तीन गुणों और द्वन्द की बनी हैं | यह माया ही मनुष्य और ईश्वर के बिच हिमालय बनकर खाड़ी हैं | यही अज्ञान का पर्दा हैं |

यही हमें शोक ग्रस्त रखते हैं , वास्तव में मनुष्य का मन ही माया हैं , यह हमेशा चंचलता के कारन बदलती रहती हैं , अनुकूलता को पाकर भी दुखी रहता हैं |

SANATANI DHARM KA PARICHAY

सनातनी धर्म: एक परिचय

सनातनी धर्म, जिसे हिंदू धर्म भी कहा जाता है, दुनिया के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। यह धर्म भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न हुआ था और समय के साथ दुनियाभर में फैला। सनातन का अर्थ होता है “सदैव रहने वाला” या “शाश्वत”, और धर्म का अर्थ है “कर्तव्य” या “धार्मिक मार्गदर्शन”। इसलिए, सनातनी धर्म का अर्थ है वह धर्म जो शाश्वत और सर्वकालिक है, जो जीवन के हर पहलु में मार्गदर्शन करता है और सत्य के प्रति निष्ठा बनाए रखने का उपदेश देता है।

सनातन धर्म न केवल एक धार्मिक विश्वास है, बल्कि यह एक जीवन शैली, दर्शन, और संस्कृति का हिस्सा भी है। यह धर्म व्यक्ति को आत्मज्ञान, परमात्मा से मिलन, और संसार में सच्चाई और नैतिकता का पालन करने के लिए प्रेरित करता है। इस धर्म में कई वेद, उपनिषद, भगवद गीता, रामायण, महाभारत, और अन्य शास्त्रों के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलुओं का विस्तार से उल्लेख किया गया है। सनातन धर्म का मूल उद्देश्य आत्मा के अस्तित्व और ब्रह्मा के साथ उसका संबंध समझना है।

1. सनातनी धर्म का ऐतिहासिक संदर्भ

सनातन धर्म का इतिहास प्राचीन वेदों, उपनिषदों और पुराणों से जुड़ा हुआ है, जो लगभग 5000 से 7000 साल पुरानी हैं। इन शास्त्रों के माध्यम से यह धर्म मानव जीवन के उद्देश्य, ब्रह्मा के स्वरूप, और आत्मा के चक्र को समझाता है। वेदों के पहले भाग को ‘संहिताएँ’ कहा जाता है, जो धार्मिक और याज्ञिक विधियों के बारे में जानकारी देती हैं। दूसरे भाग में ‘ब्रह्मसूत्र’ और ‘उपनिषद’ आते हैं, जो आत्मा और ब्रह्मा के सम्बन्ध और उनकी शाश्वतता को स्पष्ट करते हैं।

सनातन धर्म में कई देवी-देवताओं की पूजा होती है, जिनमें प्रमुख ब्रह्मा (सर्जक), विष्णु (पालक), और महेश (संहारक) हैं। इसके अतिरिक्त, सनातनी धर्म में भगवान के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है, जैसे श्रीराम, श्रीकृष्ण, दुर्गा, शिव, लक्ष्मी, सरस्वती, आदि।

2. वेद और उपनिषद

सनातन धर्म का आधार वेदों और उपनिषदों पर है। वेद चार प्रकार के होते हैं: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। इन वेदों में से प्रत्येक के अंदर मन्त्र, आचार, और विधि का वर्णन किया गया है। उपनिषद वेदों के अंतिम भाग होते हैं और इनका उद्देश्य आत्मा और ब्रह्मा के बीच के संबंध को समझाना है। उपनिषदों में यह बताया गया है कि जीवन का उद्देश्य आत्मज्ञान प्राप्त करना है, और आत्मा (आत्मा) और परमात्मा (ब्रह्म) एक ही होते हैं।

3. भगवद गीता और महाभारत

सनातन धर्म में भगवद गीता का अत्यधिक महत्व है। यह महाभारत के भीष्म पर्व में 700 श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को धर्म, कर्म, योग, भक्ति और जीवन के अर्थ के बारे में उपदेश दिया। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा कि हर व्यक्ति का धर्म अपनी स्थिति और स्वभाव के अनुसार तय होता है। गीता में कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग और राज योग का भी वर्णन है, जो व्यक्ति को जीवन में सफलता और संतुलन बनाए रखने का मार्गदर्शन देते हैं। http://builtwith.com/sanatanikatha.com 

महाभारत, जिसमें भगवद गीता का उपदेश भी शामिल है, एक महान भारतीय महाकाव्य है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे कि राजनीति, परिवार, नैतिकता, और युद्ध के विषय में गहरे दर्शन प्रस्तुत करता है। इसमें दिए गए उपदेश आज भी जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शन करते हैं।

4. हिंदू धर्म का दर्शन

सनातनी धर्म का दर्शन अत्यंत गहरा और विविधतापूर्ण है। इसमें चार मुख्य दर्शनों का उल्लेख किया गया है:

  1. सांख्य दर्शन – यह दर्शन अस्तित्व की वास्तविकता को समझने का प्रयास करता है। इसमें द्वैतवाद को स्वीकार किया जाता है, जो कहता है कि आत्मा और प्रकृति (प्रकृति को ‘प्रकृति’ और आत्मा को ‘पुरुष’ कहा जाता है) अलग-अलग हैं, लेकिन उनका संबंध अभिन्न है।
  2. योग दर्शन – यह आत्मा के साधन और उच्चतम अवस्था तक पहुँचने के उपायों को बताता है। योग की कई विधियाँ हैं, जैसे कर्म योग, भक्ति योग, और ज्ञान योग, जिनके माध्यम से व्यक्ति आत्मा की शुद्धि और भगवान से मिलन प्राप्त कर सकता है।
  3. न्याय दर्शन – यह तर्क और प्रमाण पर आधारित दर्शन है, जिसमें सत्य की खोज के लिए प्रमाणों और तर्कों का उपयोग किया जाता है।
  4. वैशेषिक दर्शन – इस दर्शन में ब्रह्म और उसके विभिन्न रूपों के बारे में विस्तृत विचार किया गया है। इसमें पदार्थों की विविधता और उनके गुण, कर्म और स्वभाव का विश्लेषण किया गया है।

इन दर्शनों में संसार की वास्तविकता, आत्मा का अस्तित्व और भगवान के साथ संबंध को स्पष्ट रूप से समझाया गया है।

5. सनातन धर्म के मुख्य सिद्धांत

  1. धर्म: धर्म का अर्थ है कर्तव्य, जो जीवन के हर क्षेत्र में निभाना चाहिए। धर्म का पालन करना न केवल व्यक्तिगत मोक्ष के लिए आवश्यक है, बल्कि समाज और मानवता की भलाई के लिए भी महत्वपूर्ण है।
  2. कर्म: सनातन धर्म में कर्म का सिद्धांत महत्वपूर्ण है। कर्म का मतलब है किसी भी कार्य के परिणामों को समझना और अपने कर्तव्यों को पूरी ईमानदारी से निभाना। कर्मफल का सिद्धांत यह कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने अच्छे और बुरे कर्मों के अनुसार फल मिलता है।
  3. माया: माया का अर्थ है संसार की भौतिक और अस्थिर प्रकृति। सनातन धर्म यह मानता है कि संसार की यह माया केवल आत्मा को भ्रमित करती है और उसे उसके असली स्वरूप से दूर रखती है। आत्मा को माया से मुक्त कर एकत्व की ओर बढ़ने की आवश्यकता है।
  4. आत्मा और ब्रह्म: सनातन धर्म के अनुसार, हर व्यक्ति की आत्मा शाश्वत और अमर है। ब्रह्म (परमात्मा) ही पूरे ब्रह्मांड का स्रोत है, और आत्मा का अंतिम लक्ष्य ब्रह्म के साथ एकाकार होना है।
  5. पुनर्जन्म और कर्मफल: सनातन धर्म यह मानता है कि जन्म और मृत्यु का चक्र निरंतर चलता रहता है। व्यक्ति अपने कर्मों के अनुसार अगले जन्म में पुनः जन्म लेता है। इसलिए, अपने कर्मों को सही और निष्कलंक रखना जरूरी होता है।

6. सनातनी धर्म की विविधता

सनातन धर्म अत्यधिक विविध और समावेशी है। इसमें कोई एक ही पंथ या पद्धति नहीं है, बल्कि विभिन्न आस्थाएँ, देवी-देवता, पूजा विधियाँ, और धार्मिक परंपराएँ मौजूद हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोग शंकराचार्य की अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को मानते हैं, जबकि कुछ भक्तों के लिए भगवान श्री कृष्ण या राम प्रमुख देवता हैं। इसी तरह, देवी पूजा, शिव पूजा, और अन्य देवताओं की पूजा भी समान रूप से महत्व रखती है।

7. सनातन धर्म का समाज और संस्कृति पर प्रभाव

सनातनी धर्म ने भारतीय समाज और संस्कृति को गहरे तरीके से प्रभावित किया है। यह धर्म न केवल धार्मिक आस्थाओं का समूह है, बल्कि भारतीय समाज के प्रत्येक पहलू जैसे कला, संगीत, साहित्य, परिवार व्यवस्था, शिक्षा, और राजनीति पर भी असर डालता है। उदाहरण के लिए, भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य, योग, आयुर्वेद, वास्तुशास्त्र, और अन्य सांस्कृतिक परंपराएँ सनातनी धार्मिक दर्शन से उत्पन्न हुई हैं।

निष्कर्ष

सनातन धर्म एक शाश्वत और व्यापक धर्म है, जो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मार्गदर्शन प्रदान करता है। इसके अंतर्गत ध्यान, साधना, भक्ति, और कर्म के माध्यम से व्यक्ति को आत्मज्ञान और ब्रह्म से मिलन का मार्ग बताया गया है। यह धर्म न केवल आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है, बल्कि यह समाज, संस्कृति और जीवन के प्रत्येक पहलु को संतुलित और नैतिक बनाने की प्रेरणा देता है।