विष्णु को पालनकर्ता क्यों कहा जाता है?
विष्णु हिन्दू धर्म के त्रिमूर्ति के एक महत्वपूर्ण देवता हैं। त्रिमूर्ति में ब्रह्मा, विष्णु और शिव आते हैं, जिन्हें सृष्टि के रचनाकार, पालक और संहारक के रूप में पूजा जाता है। इन तीनों देवताओं का हर एक का अलग-अलग कार्य है, जो मिलकर इस सृष्टि के संतुलन को बनाए रखते हैं। विष्णु का कार्य इस सृष्टि की रक्षा करना है,
इसीलिए उन्हें ‘पालनकर्ता’ कहा जाता है। उनके इस कार्य की विशेषता यह है कि वे सृष्टि की सुरक्षा के लिए न केवल सृजन और प्रलय के बीच का संतुलन बनाए रखते हैं, बल्कि जब भी पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है, वे ‘अवतार’ के रूप में अवतार लेकर उसे पुनः स्थापित करने का कार्य करते हैं। विष्णु का यह गुण उन्हें अन्य देवताओं से अलग और विशेष बनाता है।
विष्णु का रूप और उनके कार्य
विष्णु का रूप अत्यंत शांत और सौम्य होता है। उन्हें अक्सर नीले रंग के शरीर के रूप में चित्रित किया जाता है, जो शांति, स्थिरता और संतुलन का प्रतीक है। उनके चार हाथ होते हैं, जिनमें शंख, चक्र, गदा और पद्म होते हैं, और इन चारों का एक विशेष अर्थ है। शंख उनके संदेश और धर्म की घोषणा का प्रतीक है, चक्र धर्म की स्थिरता और कालचक्र का प्रतीक है, गदा शक्ति और सुरक्षा का प्रतीक है, और पद्म ज्ञान और सृजन का प्रतीक है।
विष्णु के कार्यों का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है, और उनका मुख्य उद्देश्य है धर्म की रक्षा और अधर्म का विनाश। उनकी उपासना से व्यक्ति जीवन में शांति, समृद्धि, और संतुलन प्राप्त करता है।

विष्णु के अवतार
विष्णु को ‘पालक’ के रूप में जो विशेष स्थान प्राप्त है, वह उनके विभिन्न अवतारों के कारण है। वे समय-समय पर पृथ्वी पर धर्म की रक्षा करने के लिए अवतार लेते हैं। इन अवतारों को ‘दशावतार’ के नाम से जाना जाता है। दशावतार में विष्णु ने दस अलग-अलग रूपों में पृथ्वी पर जन्म लिया। इन अवतारों का उद्देश्य संसार में व्याप्त अधर्म और असत्य का नाश करना था।
- मatsya (मछली) – पहला अवतार, जिसमें विष्णु ने मछली के रूप में जन्म लिया और पृथ्वी को जल प्रलय से बचाया।
- कूर्म (कच्छप) – दूसरे अवतार में विष्णु ने कच्छप का रूप लिया और समुद्र मंथन से अमृत प्राप्त करने के लिए पर्वत को अपने शेल में धारण किया।
- वराह (सूअर) – तीसरे अवतार में वे वराह के रूप में प्रकट हुए और पृथ्वी को राक्षस हिरण्याक्ष से बचाया।
- नरसिंह (आदिम नर और सिंह का रूप) – चौथे अवतार में विष्णु ने नरसिंह का रूप लिया और राक्षस हिरण्यकश्यप का वध किया, ताकि उसके आतंक से देवताओं और भक्तों को मुक्ति मिल सके।
- वामन (ब्रह्मचारी) – पांचवे अवतार में विष्णु ने वामन ब्राह्मण के रूप में राजा बलि से तीन पग भूमि मांगकर पूरी पृथ्वी को वापस लिया।
- परशुराम (राम के समान शस्त्रधारी) – छठे अवतार में विष्णु ने परशुराम का रूप लिया और पृथ्वी से अत्याचारियों का नाश किया।
- राम (रामचन्द्र) – सातवें अवतार में उन्होंने श्रीराम के रूप में राक्षस रावण का वध किया और धर्म की स्थापना की।
- कृष्ण (गोपियाँ और महाभारत के योगी) – आठवें अवतार में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया। उनका जीवन गीता और महाभारत के माध्यम से हमें जीवन के उद्देश्य, धर्म और योग की शिक्षा देता है।
- बुद्ध (सम्यक दर्शन) – नवें अवतार में भगवान विष्णु ने सिद्धार्थ के रूप में जन्म लिया और बौद्ध धर्म का प्रचार किया।
- कल्कि (भविष्य में अवतार) – दसवें अवतार में कल्कि के रूप में भगवान विष्णु के आने की भविष्यवाणी की गई है, जो धर्म की पुनर्स्थापना करेंगे और अधर्म का अंत करेंगे।
इन अवतारों के माध्यम से विष्णु ने हमेशा यह सिद्ध किया कि उनका मुख्य कार्य धर्म की रक्षा करना और अधर्म का नाश करना है।
विष्णु का पालनकर्ता रूप
विष्णु को पालनकर्ता कहा जाता है क्योंकि उनका कार्य सृष्टि की रक्षा करना है। भगवान विष्णु ने अपने हर अवतार में यह सिद्ध किया कि जब भी पृथ्वी पर धर्म का नाश होता है और असत्य और अधर्म का प्रकोप बढ़ता है, वे साक्षात रूप से प्रकट होते हैं और संसार में संतुलन स्थापित करते हैं। http://www.alexa.com/siteinfo/sanatanikatha.com
धर्म का पालन और न्याय का संरक्षण उनके मुख्य कार्य हैं। जब राक्षसों और असुरों द्वारा धर्म की अवहेलना होती है और पृथ्वी पर अधर्म फैलता है, तब भगवान विष्णु अपनी महिमा के द्वारा धर्म की पुनः स्थापना करते हैं।
विष्णु और उनके भक्तों के संबंध

विष्णु का पालनकर्ता रूप केवल सृष्टि की रक्षा करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वे अपने भक्तों की भी रक्षा करते हैं। भगवान विष्णु के प्रति श्रद्धा रखने वाले भक्तों का विश्वास होता है कि विष्णु न केवल उन्हें पापों से मुक्त करेंगे, बल्कि उनका पालन-पोषण और आशीर्वाद भी करेंगे। विष्णु के मंदिरों में उनकी पूजा श्रद्धा और भक्ति के साथ की जाती है, और भक्तों की एक विशेष आस्था होती है कि विष्णु की कृपा से उनके जीवन में समृद्धि, शांति और संतुलन आएगा।
भगवान विष्णु के इस पालनकर्ता रूप के उदाहरण रामायण और महाभारत में भी मिलते हैं। श्रीराम का जीवन, जहां वे धर्म की स्थापना के लिए लड़े, और श्री कृष्ण का जीवन, जिसमें उन्होंने गीता का उपदेश देकर लोगों को सही मार्ग दिखाया, यह दोनों ही भगवान विष्णु के पालनकर्ता रूप के प्रतिक हैं।
विष्णु की उपासना का महत्व
विष्णु की उपासना से व्यक्ति को न केवल संसारिक सुख मिलते हैं, बल्कि वह मोक्ष की प्राप्ति की ओर भी अग्रसर होता है। विष्णु के नाम का जप, उनका ध्यान और उनकी पूजा से व्यक्ति के जीवन से तमाम दुख-दर्द समाप्त हो जाते हैं। विष्णु के नाम में ऐसी शक्ति होती है, जो व्यक्ति के जीवन को संवार सकती है। विष्णु के प्रति भक्ति रखने वाले भक्त जीवन की कठिनाइयों में भी आशा की किरण पाते हैं।
भगवान विष्णु के रूप में जीवन के हर पहलू को ध्यान में रखते हुए सृष्टि के पालन का कार्य करना, भगवान के महान कार्यों का प्रतिबिंब है। उनके द्वारा किए गए कार्य न केवल संसार के भौतिक संतुलन को बनाए रखते हैं, बल्कि आंतरिक शांति और भक्ति की भावना को भी जाग्रत करते हैं।
विष्णु की उत्पत्ति:
विष्णु भारतीय हिन्दू धर्म के त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) में से एक हैं, जो संसार के पालनहार माने जाते हैं। वे भगवान के एक सर्वोत्तम रूप के रूप में प्रतिष्ठित हैं और उनके बारे में पुराणों, वेदों और शास्त्रों में विस्तृत रूप से वर्णन मिलता है। विष्णु की उत्पत्ति के विषय में विभिन्न हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में विविध कथाएँ पाई जाती हैं, जिनमें ब्रह्मा, विष्णु और शिव के समन्वय से सम्बन्धित अनेक दृष्टिकोण मिलते हैं।
1. विष्णु का स्वरूप:

विष्णु का रूप शान्त, स्थिर, और मोह से परे है। वे चार भुजाओं वाले देवता माने जाते हैं, जिनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म होते हैं। शंख उनके संगीतमय स्वर का प्रतीक है, चक्र उनके कार्य के चक्र का, गदा शक्ति का प्रतीक है, और पद्म एक शुद्धता और समृद्धि का प्रतीक है। विष्णु का श्वेत रंग, सौम्यता और पुण्य की अभिव्यक्ति है।
विष्णु की उत्पत्ति से संबंधित विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में वर्णन मिलता है, जिसमें वे सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में प्रकट होते हैं।
2. विष्णु का जन्म सृष्टि के निर्माण से पहले:
विष्णु का अस्तित्व हिन्दू धर्म में अनादि (अनन्त) और निराकार (निराकार) माना गया है। वे सृष्टि के निर्माण से पहले भी विद्यमान थे और उनका कोई प्रारंभ या अंत नहीं है। श्री विष्णु के बारे में बताया जाता है कि वे ब्रह्मा के साथ सृष्टि के पालन की भूमिका निभाते हैं। विष्णु की उत्पत्ति ब्रह्मा के तत्वों से हुई मानी जाती है, जिनके द्वारा सृष्टि का प्रारंभ हुआ था।
सृष्टि के आरंभ में, जब ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण करना शुरू किया, तब विष्णु ने स्वयं को सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान रूप में प्रकट किया। ऐसा कहा जाता है कि वे साकार रूप में शेषनाग (शेष) पर शयन करते हुए प्रकट होते हैं, जिनकी दृष्टि में ब्रह्मांड और सभी जीवों का अस्तित्व समाहित होता है।
3. विष्णु की उत्पत्ति के संदर्भ में भगवद गीता:
भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं को विष्णु का अवतार बताया है। जब भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से बात करते हैं, तो वे कहते हैं:
यहां भगवान श्री कृष्ण ने यह बताया कि वे विष्णु के अंश से उत्पन्न हुए हैं और वे स्वयं विष्णु का रूप हैं। भगवद गीता में यह स्पष्ट किया गया है कि विष्णु का अवतार समय-समय पर पृथ्वी पर होता है जब धर्म की हानि होती है और अधर्म का प्रकोप बढ़ जाता है।
4. विष्णु के दश अवतार:
विष्णु के दस प्रमुख अवतारों को “दशावतार” कहा जाता है, जो विशेष रूप से उनके अवतारों के रूप में उनकी उत्पत्ति की प्रक्रिया को व्यक्त करते हैं। ये दस अवतार हैं:
- मत्त्स्य अवतार (मछली के रूप में)
- कूर्म अवतार (कछुए के रूप में)
- वराह अवतार (सूअर के रूप में)
- नृसिंह अवतार (आधा मनुष्य और आधा शेर के रूप में)
- वामन अवतार (बौने ब्राह्मण के रूप में)
- परशुराम अवतार (ब्राह्मण क्षत्रिय के रूप में)
- राम अवतार (रामचन्द्र के रूप में)
- कृष्ण अवतार (कृष्ण के रूप में)
- बुद्ध अवतार (गौतम बुद्ध के रूप में)
- कल्कि अवतार (आने वाला भविष्य के रूप में)
इन अवतारों के माध्यम से विष्णु ने पृथ्वी पर धर्म की पुनःस्थापना की और अधर्म को नष्ट किया।
5. विष्णु की उत्पत्ति के ऐतिहासिक संदर्भ:

विष्णु की उत्पत्ति के ऐतिहासिक संदर्भ में कहा जाता है कि वे स्वयं सृष्टि के रचयिता नहीं, बल्कि सृष्टि के पालनकर्ता हैं। ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया, लेकिन उनके बनाए हुए संसार को संरक्षित करने की जिम्मेदारी विष्णु की थी। विष्णु का यह रूप सर्वकालिक और सर्वशक्तिमान होता है। वे धर्म, सत्य और न्याय के प्रतीक हैं और हर काल में जब धर्म की हानि होती है, वे अवतार लेकर पृथ्वी पर आते हैं।
विष्णु का प्रत्येक अवतार समय-समय पर पृथ्वी पर होता है, जब पृथ्वी पर पाप का प्रकोप बढ़ता है और सृष्टि का संतुलन बिगड़ता है। ऐसे समय में विष्णु के अवतार धरती पर होते हैं और वे सृष्टि के संतुलन को बहाल करते हैं।
6. विष्णु की उत्पत्ति और उनका महत्व:
विष्णु की उत्पत्ति का मुख्य उद्देश्य संसार के संतुलन को बनाए रखना और धर्म की रक्षा करना है। वे सृजन के साथ-साथ सृष्टि के संरक्षण और नाश के भी उत्तरदायी होते हैं। विष्णु के बिना सृष्टि का कोई अस्तित्व नहीं हो सकता, क्योंकि उनके अस्तित्व में ही सभी जीवों का पालन और पोषण है। उनके संरक्षण के बिना सृष्टि के अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं है।
विष्णु का अवतार और उनकी उत्पत्ति धार्मिक दृष्टि से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वे अनन्त हैं और उनका रूप सशक्त और कृपाशील है। धर्म की स्थापना के लिए वे प्रत्येक युग में अवतार लेते हैं और जीवन के हर पहलू में संतुलन बनाए रखते हैं।
निष्कर्ष
इस प्रकार, भगवान विष्णु को पालनकर्ता कहा जाता है क्योंकि उनका मुख्य कार्य सृष्टि की रक्षा और धर्म की स्थापना करना है। वे हर युग में अवतार लेकर संसार को अधर्म से बचाने और धर्म की पुनः स्थापना करने का कार्य करते हैं। उनके इस कार्य से उन्हें ‘पालनकर्ता’ की उपाधि प्राप्त है। विष्णु के माध्यम से हम यह सीखते हैं कि धर्म का पालन करना, अधर्म का नाश करना, और जीवन में संतुलन बनाए रखना, यही सच्चे जीवन का मार्ग है।